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विकास की पहली भूमिका मनुष्य के जीवन में कामवासना, लोलुपता आदि वृत्तियां होती हैं। वहां वैराग्य, समाधि और अन्तर्दृष्टि की शक्तियां भी होती हैं।
जो व्यक्ति वृत्तियों को संयत करना और आन्तरिक शक्ति का विकास करना चाहता है उसे चैतन्यकेन्द्रों की शरीर में अवस्थिति और उनके कार्य का बोध अवश्य करना चाहिए। इनका अन्तःस्रावी ग्रन्थितन्न एवं मस्तिष्क के विभिन्न परतों और अवयवों के सन्दर्भ में प्रस्तुतीकरण बहुत उपयोगी होगा।
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२५ मार्च
२५ मार्च २०००
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- 2017
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