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चौदहवां बोल
उसका कारण अव्यक्त आशा ही है।
सम्यक्त्व-संवर और व्रत संवर-ये दोनों संवर त्याग करने से होते हैं, अन्यथा नहीं।
३. अप्रमाद संवर-आत्म-प्रदेश स्थित अनुत्साह का क्षय हो जाना अप्रमाद संवर है।
४. अकषाय संवर-आत्म-प्रदेश स्थित कषाय (क्रोध, मन, काया और लोभ) का क्षय हो जाना अकषाय संवर है।
५. अयोग संवस्-योग का निरोध होना अयोग संवर है। ___अप्रमाद, अकषाय, अयोग-ये तीन संवर परित्याग करने से नहीं होते, किन्तु तपस्या आदि साधनों के द्वारा आत्मिक उज्ज्वलता से ही होते हैं।'
सम्यक्त्व, व्रत, अप्रमाद, अकषाय और अयोग-इन पांच संवरों के अतिरिक्त जो पन्द्रह भेद हैं, वे व्रत संवर के ही हैं। उन पन्द्रह भेदों में त्याग की अपेक्षा रहती है। सावध योग का त्याग करने से ही वे संवर होते हैं? शेष पन्द्रह भेद ये हैं-- १. प्राणातिपात-विरमण संवर ६. रसनेन्द्रिय-निग्रह संवर २. मृषावाद-विरमण संवर १०. स्पर्शनेन्द्रिय-निग्रह संवर ३. अदत्तादान-विरमण संवर ११. मनो-निग्रह संवर ४. अब्रह्मचर्य-विरमण संवर १२. वचन-निग्रह संवर ५. परिग्रह-विरमण संवर १३. काय-निग्रह संवर ६. श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह संवर १४. भण्डोपकरण रखने में अयतना न करना। ७. चक्षुःइन्द्रिय-निग्रह संवर १५. सूचि-कुशाग्रमात्र दोष सेवन न करना । ८. घ्राणेनिद्रय-निग्रह संवर
प्रश्न--प्राणातिपात आदि पन्द्रह आश्रव योग-आश्रव के भेद हैं तो फिर प्राणातिपात-विरमण आदि पन्द्रह संवर अयोग संवर के भेद न होकर व्रत संवर के भेद क्यों?
उत्तर--अव्रत आश्रव का कारण सावध योग की प्रवृत्ति है अर्थात् प्राणातिपात आदि पन्द्रह आश्रव हैं। प्राणातिपात आदि पन्द्रह पापकारी प्रवृत्तियों का त्याग नहीं, यह अव्रत-आश्रव है और ये पन्द्रह आश्रव प्रवृत्ति रूप हैं, मन, वचन और शरीर की असत् प्रवृत्ति से ही हिंसा आदि किए जाते हैं। प्रवृत्ति करना योग आश्रव हैं, अतएव वे सब उसी (योग आश्रव) के अन्तर्गत होते १. नवपदार्थ संवर, ढाल १, गाथा ६ 'प्रमाद आश्रव ने कषाय योग आश्रव, ये तो नहीं मिटे, कियां पच्चखाण। ये तो सहजे मिटे है कर्म अलग हुया, तिण री अन्तरंग कीजो पहिचान ।
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