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चौदहवां बोल
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बिना कोई भी काम नहीं हो सकता। अतः धर्म के बिना पुण्य नहीं--यह बात सैद्धांतिक एवं तार्किक-उभय दृष्टि से संगत है।
प्रश्न- कई लोगों की ऐसी मान्यता है कि मिथ्यात्वी धर्म नहीं कर सकता, परन्तु पुण्य बांधता है-इसका समाधान कैसे होगा?
उत्तर--आत्मा का वह परिणाम धर्म ही है, जो आत्मा को उज्ज्वल बनाता है। मिथ्यात्वी शुभ क्रिया करता है। उससे कर्म अलग होते हैं। कर्म अलग होने से आत्मा उज्जवल होती है, इसलिए उसकी शुभ क्रिया धर्म है। यदि मिथ्यात्वी के आत्मा की उज्ज्वलता न मानी जाए तो फिर आत्मा उज्ज्वल हुए बिना मिथ्यात्वी मिथ्यात्व को छोड़कर सम्यक्त्वी कैसे बन सकता है? ४. पाप
पाप अशुभकर्म का उदय है। पहले बन्धा हुआ अशुभ कर्म उदय में आकर जब अशुभ फल देता है। तब वह पाप कहलाता है पाप अठारहू प्रकार का है : १. प्रणातिपात-प्राण-वियोजन से आत्मा के साथ चिपकने वाला पुद्गल
समूह। २. मृषावाद पाप पाप-झूठ बोलने से आत्मा के साथ चिपकने वाला
पुद्गल-समूह। ३. अदत्तादान पाप-चोरी करने से आत्मा के साथ चिकपने वाला
पुद्गल-समूह। ४. मैथुन पाप-अब्रह्मचर्य सेवन से आत्मा के साथ चिपकनेवाला
पुद्गल-समूह। परिग्रह पाप-परिग्रह रखने से आत्मा के साथ चिपकने वाला
पुद्गल-समूह। ६. क्रोध पाप-क्रोध करने से आत्मा के साथ चिपकनेवाला पुद्गल-समूह। ७. मान पाप-मान करने से आत्मा के साथ चिपकनेवाला पुद्गल-समूह । ८. माया पाप--माया करने से आत्मा के साथ चिपकनेवाला पुद्गल-समूह । ६. लोभ पाप-लोभ करने से आत्मा के साथ चिपकने वाला पुद्गल-समूह । १०. राग पाप-राग करने से आत्मा के साथ चिपकनेवाला पुद्गल-समूह । ११. द्वेष पाप-द्वेष करने से आत्मा के साथ चिपकने वाला पुद्गल-समूह । १२. कलह पाप-कलह करने से आत्मा के साथ चिपकने वा पुद्गल-समूह।
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