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________________ OF जीव-अजीव २. वैभाविक-स्कन्ध-पुद्गलों के स्कन्ध वैभाविक हैं। ये समुदित होते हैं और बिखर जाते हैं। देश--स्कन्ध का बुद्धि-कल्पित अंश देश कहलाता है। प्रदेश-स्कन्ध का सर्व सूक्ष्म अंश प्रदेश कहलाता है। परमाणु-एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श (शीत और उष्ण में से एक तथा स्निग्ध और रूक्ष में एक) वाला होता है। प्रदेश व परमाणु एक ही हैं। परन्तु जब तक वह स्कन्ध के संलग्न रहता है तब तक उसे प्रदेश और जब स्कन्ध से अलग हो जाता है तब उसे परमाण कहते हैं। १. धर्मास्तिकाय-जीव और पुद्गलों की गति में और हलन-चलन आदि में जो उदासीन सहायक होता है उसे धर्मास्तिकाय कहते हैं। जैसे मछली की गति में पानी सहायक होता है। २. अधर्मास्तिकायजीव और पुद्गलों के स्थिर रहने में जो उदासीन सहायक होता है उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं। ३. आकाशास्तिकाय-जिसमें जीव और पुद्गल आदि द्रव्यों को रहने के लिए स्थान मिले, अवकाश मिले, आश्रय मिले, वह आकाशास्तिकाय है। ४. काल-काल काल्पनिक द्रव्य है। सूर्य-चन्द्रमा की गतिविधि के आधार पर उसकी कल्पना की गई है। उसके स्कन्ध, देश और प्रदेश-ये विभाग नहीं होते। काल का सबसे सूक्ष्म भाग समय है। जो समय उत्पन्न होता है, वह चला जाता है और जो उत्पन्न होने वाला है, वह अनुत्पन्न है अर्थात् उत्पन्न नहीं हुआ और जो वर्तमान है, वह एक है। स्कंध समुदाय से होता है, इसलिए काल का स्कंध नहीं होता। स्कंध के बिना देश भी नहीं होता। काल का आया हुआ समय चला जाता है, नष्ट हो जाता है, अतः काल के प्रदेश भी नहीं होते। इसलिए काल का भेद एक केवल काल ही है। ५. पुद्गलस्तिकाय-जिसमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हो, उसे पुद्गलास्किाय कहा जाता है।' ३. पुण्य पुण्य शुभ कर्म का उदय है। पहले बंधे हुए शुभ-कर्म जब शुभ फल देते हैं तब वे पुण्य कहलाते हैं। पुण्य के नौ प्रकार हैं १. अन्न पुण्य २. पान पुण्य ३. स्थान पुण्य ४. शय्या पुण्य ५. वस्त्र पुण्य ६. मन पुण्य ७. वचन पुण्य ८. काय पुण्य ६. नमस्कार पुण्य। ये भेद वास्तव में पुण्य तत्त्व के नहीं, परन्तु पुण्य के कारणों के हैं। १. विस्तृत जानकारी के लिए देखें बीसवां बोल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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