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चौदहवां बोल
पर्याप्ति को छोड़कर शेष पांचों पर्याप्तियों के अधिकारी होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव छहों पर्याप्तयों के अधिकारी होते हैं। जिस जाति के जीव में जितनी पर्याप्तियां हो सकती हैं, उतनी पाए बिना ही जो जीव मर जाते हैं या जब तक पूर्ण नहीं कर पाते तब तक उन्हें अपर्याप्त कहते हैं और जो जीव अपने योग्य पर्याप्तियों को पा लेते हैं, वे पर्याप्त कहलाते हैं। पहली तीन पर्याप्तियों को पूर्ण किए बिना कोई भी जीव मर नहीं सकता। उनकी पूर्ति के बाद भी एक इन्द्रिय वाले जीव श्वासोच्छ्रवास - पर्याप्ति को जब तक पूर्ण नहीं कर लेते, तब तक वे अपर्याप्त होते हैं और जो पूर्ण कर लेते हैं, वे पर्याप्त । द्वीन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीव भाषा - पर्याप्ति को जब तक पूर्ण नहीं करते तब तक वे अपर्याप्त होते हैं। जो पूर्ण कर लेते हैं, वे पर्याप्त कहलाते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव मनःपर्याप्ति को जब तक पूर्ण नहीं करते तब तक वे अपर्याप्त होते हैं और जो पूर्ण कर लेते हैं, वे पर्याप्त । २. अजीव
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अजीव के मुख्य भेद पांच और गौण भेद चौदह हैं:१. धर्मास्तिकाय के तीन भेद हैं--स्कन्ध, देश, प्रदेश ।
२. अधर्मास्तिकाय के तीन भेद हैं--स्कन्ध, देश, प्रदेश ।
३. आकाशास्तिकाय के तीन भेद हैं--स्कन्ध, देश, प्रदेश । ४. काल का एक भेद है--काल ।
५. पुद्गलास्तिकाय के चार भेद हैं- स्कन्ध, देश, प्रदेश, परमाणु । स्कन्ध-- जिसके खण्ड न हों सर्वथा अविभाज्य हो, उसे स्कन्ध कहा जाता
है। कोई अलग-अलग अवयव इकट्ठे होकर जो अवयवी अर्थात् एक समूह बन जाता है उसे भी स्कंध कहा जाता है । परन्तु यहां पहली परिभाषा ही इष्ट
है |
स्कंध अनन्त हैं और भांति-भांति के हैं । जैसे--दो परमाणुओं का समुदाय द्वि-प्रदेशी स्कन्ध, तीन परमाणुओं का समुदाय त्रि-प्रदेशी स्कंध एवं असंख्य, अनन्त, अनन्तानन्त परमाणुओं का समुदाय क्रमशः असंख्य-प्रदेशी, अनन्त- प्रदेशी और अनन्तानन्त- प्रदेशी स्कन्ध है ।
स्कन्ध दो प्रकार के होते हैं
१. स्वाभाविक-स्कन्ध-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, अकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय- इनके स्कन्ध स्वाभाविक हैं। इनका विभाग कदापि नहीं हो सकता ।
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