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चौदहवां बोल
नौ तत्त्व के ११५ भेद १. जीव के १४ भेद
६. संवर के २० भेद २. अजीव के १४ भेद ७. निर्जरा के १२ भेद ३. पुण्य के भेद
८. बंध के ४ भेद ४. पाप के १८ भेद ६. मोक्ष के ४ भेद ५. आश्रव के २० भेद
तत्त्व का अर्थ है--सद्वस्तु, वह वस्तु जिसका वास्तविक अस्तित्त्व हो। तत्त्व नौ हैं
१. जीव--चेतनामय अविभाज्य असंख्य-प्रदेशी पिण्ड। २. अजीव--अचेतन तत्त्व। ३. पुण्य-सुख देनेवाला उदीयमान शुभ कर्म पुद्गल-समूह । ४. पाप--दुख देनेवाला उदीयमान अशुभ कर्म पुद्गल-समूह । ५. आश्रव-कर्म-ग्रहण करने वाली आत्मा की अवस्था। ६. संवर-कर्म निरोध करनेवाली आत्मा की अवस्था । ७. निर्जरा--कर्म तोड़नेवाली आत्मा की अवस्था । ८. बन्ध--आत्मा के साथ दूध-पानी की भांति एकीभूत होनेवाला
कर्म-पुद्गल-समूह।
६. मोक्ष--कर्मों का अत्यन्त वियोग, आत्म-स्वरूप का प्रकटीकरण। १. जीव
इन्द्रियों के आधार पर जीव पांच प्रकार के होते हैं। एक इन्द्रिय वाले जीव दो प्रकार के होते हैं:
१. सूक्ष्म आंखों से नहीं दिखने वाले--जिनका शरीर दृष्टिगोचर न हो। २. बादर-जिनका शरीर दृष्टिगोचर हो।
एकेन्द्रिय के सिवाय और कोई जीव सूक्ष्म नहीं होते। सूक्ष्म से हमारा अर्थ उन जीवों से है, जो समूचे लोक में फैले हुए हैं और वे जो इतने सूक्ष्म हैं कि किसी तरह के स्थूल प्रहार से नहीं मारे जा सकते। अतएव उनके द्वारा
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