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अधोगमन का कारण है। मृदु-स्पर्श नमन का और कठिन - स्पर्श अनमन का कारण है।
रूक्ष-स्पर्श की बहुलता से लघु-स्पर्श होता है और स्निग्ध-स्पर्श की बहुलता से गुरु स्पर्श होता है। शीत और स्निग्ध-स्पर्श की बहुलता से मृदु-स्पर्श होता है । उष्ण या रूक्ष की बहुलता से कर्कश - स्पर्श बनता है। इस प्रकार चार स्पर्श बन जाने से सूक्ष्म स्कन्ध भी बादर स्कन्ध बन जाता है।
जीव-अजीव
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चतुःस्पर्शी स्कन्ध से अष्टस्पर्शी स्कन्ध बनने का कारणशीत उष्ण निध रूक्ष रे, सूक्षम ए चिहूं मूलगा । अन्य चिहूं क ख ड. प्रमुख रे, ते किम बादर नीपजे ।। लूख फर्श नी जाण रे, बहुलाई करी हुवे लघु । निध तणी पहिचाण रे, बहुलाई करी हुवे गुरु || स्पर्श आदि पौद्गलिक होने के कारण मूर्त हैं। मूर्त होने के कारण इन्द्रियगम्य हैं। यह कोई नियम नहीं कि जितने मूर्त पदार्थ हैं, वे सब-के-सब इन्द्रिय द्वारा जाने जा सकते हैं। परमाणु मूर्त हैं तो भी इन्द्रिय- गम्य नहीं । अनन्त परमाणुओं का एक स्कन्ध बनता है तो भी जब तक सूक्ष्म-परिणाम की निवृत्ति और स्थूल परिणाम की प्राप्ति नहीं होती, तब तक वह भी इन्द्रिय- गम्य नहीं बनता । जितने पदार्थ दृष्टि गोचर होते हैं, वे सब मूर्त हैं और अनन्त- प्रदेशी स्कन्ध हैं। सूक्ष्मातिसूक्ष्म यंत्रों से जो दृष्टिगोचर होते हैं, वे भी अनन्त- प्रदेशी स्कन्ध हैं । परमाणु आदि प्रत्यक्ष ज्ञान ( अवधिज्ञान आदि) के बिना दीख भी नहीं सकते। शब्द आदि जितने भी इन्द्रिय-विषय हैं, वे सब अनन्त- प्रदेशी स्कन्ध हैं। अतः इन्द्रिय- ज्ञान की सीमा में हैं। स्थूल परिणाम वाले पुद्गल - स्कन्ध इन्द्रिय द्वारा जाने जाते हैं, सूक्ष्म परिणाम वाले नहीं । यदि ऐसा माना जाए तब तो कहना होगा कि सामान्यतः जो आंखों से दीखते हैं, वे स्थूल हैं और यंत्रों की सहायता से दीखते हैं वे सूक्ष्म हैं, परन्तु बात ऐसी नहीं है । दृष्टि में आने वाले सब स्थूल हैं चाहें वे आंखों से देखे जाएं अथवा बाहूय साधनों की सहायता से देखे जाएं। यदि कोई यह पूछे कि यदि यह स्थूल है तो फिर पर्याप्त सहयोग के बिना दीखता क्यों नहीं ? इसका उत्तर यह है कि इन्द्रिय-ज्ञान में बाहूय साधनों की अपेक्षा रहती है। जब तक इन्द्रिय को बाह्य सामग्री की पूर्णता प्राप्त नहीं होती तब तक वह अपने विषय को पूर्णतया नहीं जान सकती।
१. श्रीमज्जयाचार्यकृत-- भगवती की जोड़ शतक, १८/६
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