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________________ बारहवां बोल ६६ १. सौंठ तिक्त है। २. नीम का रस कटु होता है। ३. हरड़ कषैला होता है। ४. इमली का रस अम्ल (खट्टा) होता है। ५. चीनी का रस मधुर होता है। रस-मात्र रसनेन्द्रिय का विषय है। स्पर्श स्पर्श भी पौद्गलिक है। उसके आठ भेद हैं : १. शीत २. उष्ण ३. स्निग्ध ४. रुक्ष ५. लघु ६. गुरु ७. मृदु ८. कर्कश । इनमें आदि के चार स्पर्श मूल के हैं और अन्तिम चार स्पर्श उनकी बहुलता से बनते हैं। लघुता, गुरुता, मृदुता और कर्कशता आपेक्षिक हैं। व्यवहार दृष्टि से पदार्थ गुरू, लघु, गुरु-लघु, अगुरुलघु--चार प्रकार के होते हैं। पत्थर गुरु हैं, दीपशिखा लघु है, हवा गुरु-लघु है, आकाश अगुरु-लघु है, परन्तु निश्चय-दृष्टि से न तो कोई द्रव्य सर्वथा लघु और न सर्वधा गुरु है। पत्थर आदि गुरु हैं तो भी प्रयोग से ऊपर चले जाते हैं, अतः वह एकान्त रूप से गुरु नहीं। छत से गिराया हुआ रुई का पुंज भी नीचे चला जाता है, अतः वह एकांत रूप में लघु नहीं। किन्तु रुई की अपेक्षा पत्थर भारी है और पत्थर की अपेक्षा रूई का पुंज हल्का है। ऊपर तथा नीचे जाने में लघुता तथा गुरुता निश्चित रूप से कारण नहीं। मुख्यतः जो उर्ध्वगति परिणाम वाले पुद्गल हैं, वे उर्ध्वगति करते हैं और जो अधोगति परिणाम वाले हैं वे अधोगति करते हैं। उर्ध्वगति परिणाम से धुआँ नीचे से ऊपर जाता है और अधोगति परिणाम से वस्तु ऊपर से नीचे की ओर आती है। यहां पर ऊर्ध्वगति परिणाम और अधोगति परिणाम ही कारण हैं, गुरुता और लघुता कारण नहीं । परिणाम का परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन स्वभाव से भी होता है और प्रयोग से भी होता है। मूल चार स्पर्श वाले स्कन्ध अगुरु-लघु ही होते हैं, जैसे उच्छ्वास, कार्मण, मन और भाषा के पुद्गल-स्कन्ध । अष्टस्पर्शी स्कन्ध गुरु-लघु होते हैं, जैसे--कार्मण शरीर को छोड़कर शेष चार शरीरों के पुद्गल-स्कन्ध । ____ कई ग्रन्थों में स्पर्श के लक्षण इस प्रकार बतलाये गये हैं। उष्ण-स्पर्श मृदुता व पाक करनेवाला है। शीत-स्पर्श निर्मलता व स्तम्भित करने वाला होता है। स्निग्ध-स्पर्श संयोग होने का कारण है। रूक्ष-स्पर्श संयोग नहीं होने का कारण है। लघु-स्पर्श ऊर्ध्वगमन व तिर्यग् गमन का करण है। गुरु-स्पर्श । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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