________________
६८
जीव-अजीव
लड्डू में स्पर्श, रस, गंध आदि पांच विषयों का स्थान अलग-अलग नहीं किन्तु वे सभी उसके सब भागों में एक साथ रहते हैं। वे एक ही द्रव्य के अविभाज्य गुण हैं। स्पर्श, रस, गंध और वर्ण-ये चार पौद्गलिक द्रव्य के गुण हैं और शब्द उसका कार्य है। इन्द्रिय चाहे कितनी ही चतुर क्यों न हो, पर अपने विषय के अलावा अन्य विषय को नहीं ग्रहण कर सकती। आंख कभी सुन नहीं सकती और कान देख नहीं सकता। पांचों इन्द्रियों के पांच विषय सर्वथा पृथक्-पृथक् हैं। शब्द
शब्द अनंतानन्त पुद्गल स्कन्धों से उत्पन्न होता है। इसकी उत्पत्ति के दो कारण हैं--संघात और भेद। असंबंधित पुद्गलों का संबंध होने से और संबंधित पुद्गलों का सम्बन्ध विच्छेद होने से शब्द का जन्म होता है। इसके तीन प्रकार हैं--सचित्त शब्द, अचित्त शब्द और मिश्र शब्द।
जीव के द्वारा जो बोला जाता है, वह है सचित्त शब्द, जैसे--मनुष्य का शब्द। अचित्त (जड़) पदार्थ के द्वारा जो शब्द होता है वह है--अचित्त शब्द, जैसे टूटती हुई लकड़ी का शब्द । सचित्त और अचित्त--दोनों के संयोग से जो शब्द होता है वह है मिश्र शब्द, जैसे-बाजे का शब्द । शब्द मात्र श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है। रूप
रूप पौद्गलिक है। इसके दो अर्थ हैं-आकार और वर्ण । प्रस्तुत विषय में रूप का अर्थ वर्ण ही ग्रास्य है, आकार नहीं। वर्ण स्वयं पुद्गल नहीं, किन्तु पुद्गल का गुण है। वर्ण पांच प्रकार का है--कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत। सान्निपातिक (मिले हुए) वर्ण और भी अनेक हो सकते हैं, जैसे--एक गुण श्वेत वर्ण के साथ, एक गुण कृष्ण वर्ण का संयोग होने से कापोत वर्ण हो जाता है। रूप मात्र चक्षुःइन्द्रिय का विषय है। गन्ध
गंध भी पौद्गलिक है। इसके दो भेद हैं--सुगंध और दुर्गन्ध। सुगन्ध इष्ट परिमल है। इससे मन और इन्द्रिय प्रसन्न होते हैं। दुर्गन्ध अनिष्ट परिमल है। इससे मन और इन्द्रिय व्याकुल होते हैं। गंध मात्र घ्राणेन्द्रिय का विषय है।
रस
रस भी पौद्गलिक है। यह पांच प्रकार का है-तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org