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________________ ६० जीव-अजीव काल-उसे पास करने में छह-सात साल अवश्य लगेंगे। स्वभाव-मन की स्थिरता, पढ़ने की रुचि एवं शिक्षण-योग्य स्वभाव--इनकी अनुकूलता रहने से ही वह निश्चित अवधि में पास हो सकेगा अन्यथा नहीं। कर्म-तीक्ष्ण बुद्धि एवं स्वस्थ शरीर की जरूरत होगी और ये पूर्व-कर्मों के क्षयोपशम या उदय के अनुसार मिलते हैं। पुरुषार्थ-उद्यम करना होगा। स्कूल जाना तथा पाठ याद करना होगा। नियति-उपरोक्त चारों का शुभ संयोग प्राप्त है, परन्तु फिर भी बीच-बीच में विघ्न आ पड़ते हैं-बीमार हो जाए, शायद डॉक्टर ठीक कर दे और वह पास हो जाए- कभी-कभी ऐसे भी विघ्न आ सकते हैं कि लाख चेष्टा करने पर भी वे दूर नहीं हो सकते और विद्यार्थी फैल हो जाता है, यह नियति का ही काम है। मनुष्य का जीवन विघ्न-बाधा, दुःख और विपत्तियों से भरा हुआ है। इनके आने पर वे घबरा जाते हैं। मन चंचल हो जाता है। बाहरी निमित्त कारणों को वे दुःख का प्रधान कारण समझ बैठते हैं। अतएव निमित्त कारणों को वे भला-बुरा कहते हैं और कोसते हैं। ऐसी जटिल परिस्थिति में कर्मवाद का सिद्धांत ही उन्हें सही मार्ग पर ला सकता है। उसका प्रथम घोष है--आत्मा अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। सुख-दुःख उसी के किए हुए कर्मों का फल है। कोई भी बाहरी शक्ति आत्मा को सुख-दुःख नहीं दे सकती। वह तो सिर्फ निमित्त मात्र बन सकती है। इस विश्वास के दृढ़ होने पर आत्मा दुःख और विपत्ति के समय घबराती नहीं। वह दृढ़ता के साथ उन विपत्तियों का धैर्यपूर्वक सामना करती है। अपने दुःख के लिए वह निमित्त कारणों को दोष नहीं देती। इस प्रकार कर्मवाद हमें निराशा से बचाता है, दुःख सहने की शक्ति देता है और मन को शांत एवं स्थिर रखकर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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