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________________ दसवां बोल ५६ स्वभाव ___आम की गुठली में अंकुरित होकर वृक्ष बनने का स्वभाव है, अतः माली का पुरुषार्थ काम आता है। मालिक का भाग्य फल देता है और काल के बल से अंकुर आदि बनते हैं। हरेक वस्तु का अपना-अपना स्वभाव होता है। बबूल कभी आम उत्पन्न नहीं कर सकता । कर्म एक ही मां के दो बच्चे हैं--एक सुन्दर एवं बुद्धिमान, दूसरा कुरूप एवं मूर्ख। ऐसा क्यों? काल, पुरुषार्थ, स्वभाव--ये दोनों में समान थे, फिर अन्तर क्यों? एक ही मां-बाप का रज और वीर्य, एक ही गर्भ से उत्पन्न, एक ही वातावरण, फिर अन्तर कैसा? यह सब कर्म का प्रभाव है। जिस जीव ने पूर्वजन्म में अच्छे कर्म किए, उसको अच्छे संयोग प्राप्त हुए और जिसने बुरे कर्म किए, उसको प्रतिकूल संयोग मिले। पुरुषार्थ संसार में परिभ्रमण कराने वाला कर्म है, परन्तु मुक्त कराने में कर्म की सामर्थ्य नहीं। मुक्ति प्राप्त करने में पुरुषार्थ की सत्ता चलती है। पूर्वजन्म के अच्छे उद्योग और शुभ कर्मों का बन्ध होने पर भी वर्तमान के उद्योग के बिना पूर्व संचित शुभ कर्म भी इष्ट फल नहीं दे सकते। उसके लिए उद्योग जरूरी है। आटा, पानी और आग सब तैयार होने पर भी भाग्य-भरोसे बैठे रहने से भोजन नहीं बनता । परोसी हुई रोटी बिना हाथ चलाए मुंह में नहीं जा सकेगी। वर्तमान में उद्यम किए बिना कोई काम नहीं हो सकता। नियति को घड़नेवाला पुरुषार्थ ही है, परन्तु घड़ने के बाद वह पूर्ण स्वतंत्र है। फिर पुरुषार्थ का उस पर रत्तीभर भी जोर नहीं चलता। नियति निकाचित बन्ध वाले कर्मों का समूह नियति है। जो कर्म अवश्य भोगना पड़े, जिसकी स्थिति अथवा विपाक में कुछ भी परिवर्तन न हो सके, उस कर्म के बंध को निकाचित बंध कहते हैं। जिस कार्य का फल तदनुकूल पुरुषार्थ से विपरीत दिशा में जाए, उसको नियति का कार्य मानना चाहिए। पुरुषार्थ सिर्फ नियति के सामने निष्फल होता है। किसी भी कार्य का फल प्राप्त करने के लिए इन पांच कारणों की आवश्यकता पड़ती है, उदाहरणार्थ एक विद्यार्थी मैट्रिक परीक्षा पास करना चाहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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