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जीव-अजीव
बनते हैं।
८. अन्तरायकर्म राजा के भण्डारी (कोषाध्यक्ष) के समान है। जिस प्रकार राजा का आदेश होने पर भण्डारी के बिना दिये वह वस्तु नहीं मिलती, वैसे ही अन्तरायकर्म दूर हुए बिना इच्छित वस्तु नहीं मिलती। कर्म-बन्ध के हेतु-पांच आश्रव
मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग कर्मबंध के हेतु पांच आश्राव
इन कारणों में प्राणियों की समस्त क्रियाओं का वर्गीकरण किया हुआ है। साधारण बुद्धि बाले व्यक्ति इन्हें यथार्थ रूप में हृदयंगम नहीं कर सकते। इसलिए कर्म-बन्ध के हेतुओं का विस्तृत वर्णन करना आवश्यक है। प्रत्येक कर्म-बन्ध के पृथक्-पृथक् कारण ये हैंज्ञानावरणीय कर्म-बन्ध के कारण
१. ज्ञान-प्रत्यनीकता--ज्ञान या ज्ञानी से प्रतिकूलता रखना। २.ज्ञान-निनव--ज्ञान तथा ज्ञानदाता का अपलपन करना अर्थात् ज्ञानी
को कहना कि ज्ञानी नहीं है। ३. ज्ञानान्तराय-ज्ञान को प्राप्त करने में अन्तराय (विघ्न) डालना। ४. ज्ञान-प्रद्वेष--ज्ञान या ज्ञानी से द्वेष रखना ५. ज्ञान-आशातना-ज्ञान या ज्ञानी की अवहेलना करना। ६.ज्ञान-विसंवादन-ज्ञान या ज्ञानी के वचनों में विसंवाद अर्थात् विरोध
दिखाना। दर्शनावरणीय कर्म-बन्ध के कारण १. दर्शन-प्रत्यनीकता-दर्शन या दर्शनी से प्रतिकूलता रखना। २.दर्शन-निनव-दर्शन या दर्शनदाता का अपलपन करना अर्थत् दर्शनी को
कहना कि वह दर्शनी नहीं है। ३. दर्शनान्तराय-दर्शन को प्राप्त करने में अन्तराय (विध्न) डालना। ४. दर्शन-प्रद्वेष--दर्शन या दर्शनी से द्वेष रखना। ५. दर्शन-आशातना--दर्शन या दर्शनी की अवहेलना करना। ६.दर्शन-विसंवादन-दर्शन या दर्शनी के वचनों में विसंवाद अर्थात् विरोध
दिखाना। वेदनीय कर्म-बन्ध के कारण
वेदनीय कर्म के दो प्रकार है- सातावेदनीय और असातावेदनीय। सातावेदनीय कर्म-बन्ध के कारण -
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