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________________ आठवां बोल ३७ से भिन्न है। मन के विभाग-मन के दो विभाग हैं-द्रव्यमन (objective Mind) और भाव-मन (subjective Mind) द्रव्यमन का सम्बन्ध मस्तिष्क और इन्द्रियों के साथ है और भावमन का सम्बन्ध आत्मा के साथ है। भावमन या आत्मा अलग-अलग नहीं, दोनों एक है। जिससे विचार किया जा सके, ऐसी आत्मिक शक्ति को भावमन कहते हैं। विचार करने में सहायक होने वाले सूक्ष्म परमाणुओं को द्रव्यमन कहते हैं। भावमन तो सभी जीवों के होता है, परन्तु बहुत बूढ़ा आदमी पांव से चलने की शक्ति होने पर भी लकड़ी के सहारे बिना नहीं चल सकता, इसी तरह भावमन होने पर भी द्रव्यमन के बिना 'स्पष्ट विचार' नहीं किया जा सकता। द्रव्यमन की अपेक्षा से ही जीवों के संज्ञी और असंज्ञी-ये दो भेद किये जाते पृथ्वीकाय से लेकर चतुरिन्द्रय पर्यन्त जीवों के तो मन होता ही नहीं। पंचेन्द्रिय के मन होता है, पर सबके नहीं । पंचेन्द्रिय के चार वर्ग हैं--देव, नारक, मनुष्य और तिर्यञ्च । इनमें पहले दो वर्गों में मन उन्हीं के होता है, जो गर्भोत्पन्न हों। सम्मर्छिम मनुष्य और तिर्यञ्च के मन नहीं होता। कमि, कीड़े, मकोड़े आदि के भी सूक्ष्म मन विद्यमान है। अतः वे हित में प्रवृत्ति और अनिष्ट में निवृत्ति कर लेते हैं पर यह कार्य केवल देह यात्रोपयोगी है, इससे अधिक नहीं। इसलिए इनको मन रहित कहा जाता है। स-मनस्क प्राणी निमित्त मिलने पर देह यात्रा के अलावा यहां तक विचार कर सकता कि पूर्वजन्म की समस्त घटनावलियों का स्मरण हो सके। अतः उन्हीं को यहां स-मनस्क कहा है। देव, नारक, गर्भज मनुष्य और गर्भज तिर्यञ्च ही समनस्क हैं। ज्ञान-क्रम हमें बाहरी दुनिया का ज्ञान इद्रियों के द्वारा होता है। इंद्रियां इस ज्ञान . को मस्तिष्क तक पहुंचाती है। मस्तिष्क द्रव्यमन को, द्रव्यमन भावमन को और भावमन आत्मा को वह ज्ञान प्रेषित करता है। {<--आंख) {<--कान) {<--नाक) आत्मा--भावमन--द्रव्यमन-मस्तिष्क-{<--जीभ)<-- बाहरी दुनिया {<--स्पर्श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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