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________________ आठवां बोल ३३ (६) द्वेष-मिश्रित-द्वेष सहित बोलना। (७) हास्य मिश्रित-हंसी में बोलना। (८) भय-मिश्रित-डरकर बोलना। (६) आख्यायिक-मिश्रित--कहानी कहते समय असंभव बातें कह देना। (१०) उपघात-मिश्रित-प्राणियों की हिंसा हो, ऐसी भाषा बोलना। मिश्र-वचनयोग मिश्र भाषा बोलना । जिस भाषा में कुछ सत्य और असत्य होता है, उसे मिश्रभाषा कहते हैं। उसके दस भेद हैं : (१) उत्पन्न-मिश्रित--जितने बच्चों का जन्म हुआ है, उससे न्यूनाधिक बताना। (२) विगत-मिश्रित-इसी प्रकार मरण के विषय में न्यून और अधिक बताना। (३) उत्पन्न-विगत-मिश्रित-जन्म-मृत्यु--दोनों के विषय में न्यूनाधिक बताना। (४) जीव-मिश्रित--जीव-अजीव की विशाल राशि को देख कर कहना--'ओह ! यह कितना बड़ा जीवों का समूह है।' (५) अजीव-मिश्रित-कूड़े कचरे के ढेर को देखकर यह कहना--'ये सब अजीव है। किन्तु इसमें बहुत से जीव भी हो सकते हैं। (६) जीवाजीव-मिश्रित-जीव-अजीव की राशि में अयथार्थ रूप से यह बताना कि इसमें इतने जीव हैं और इतने अजीव । (७) अनन्त-मिश्रित-आलू, ककड़ी आदि का समूह देखकर कहना--'ये सब तो अनन्तकाय हैं। (८) प्रत्येक-मिश्रित-ककड़ी, आलू आदि का समूह देखकर कहना--'ये सब प्रत्येककाय हैं। (६.) अद्धा-मिश्रित-दिन रात आदि काल के विषय में मिश्र वचन बोलना-जैसे दिन उगने वाला है, फिर भी सुप्त पुरुष कहता है-अभी तक तो पहर रात पड़ी है। (१०) अद्धाद्धा-मिश्रित-दिन या रात के एक भाग को अद्धाद्धा कहते हैं। दिन उगा ही है तथापि मालिक नौकर से कहता है-'अरे ! दोपहर हो गया और अभी तक दीपक जल रहा है।' व्यवहार वचनयोग-व्यवहार भाषा--न सत्य, न असत्य-ऐसी भाषा बोलना। आदेश, उपदेश देना। उसके बारह भेद हैं : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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