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________________ जीव-अजीव मार्ग तो स्थिर है, चल नहीं सकता, फिर भी हम कहते हैं--यह मार्ग डूंगरगढ़ को जाता है। जलती तो हैं पर्वत पर पड़ी लकड़ियां, परन्तु हम कहते हैं--पर्वत जल रहा है। पड़ता तो है पानी, हम कहते हैं-परनाला पड़ रहा है। (८) भाव सत्य-किसी वस्तु में जो भाव मुख्य रूप से मिलता है, उसे लेकर उसका प्रतिपादन करना भाव सत्य है। सभी दृश्यमान पदार्थ पांच वर्ण के होते हैं, फिर भी किसी को काला, किसी को सफेद कहना। जैसे तोते में कई रंग होते हैं, फिर भी उसे हरा कहना । (E) योग सत्य-योग अर्थात् सम्बन्ध से किसी व्यक्ति विशेष को उस नाम से पुकारना योग सत्य है। जैसे अध्यापक को अध्यापन काल के बिना भी अध्यापक कहना। (१०) उपमा सत्य-किसी एक बात में समानता होने पर एक वस्तु की दूसरी वस्तु से तुलना करना और उसे उस नाम से पुकारना उपमा सत्य है। उपमा चार प्रकार की होती है-- (क) सत् (विद्यमान) को असत् (अविद्यमान) की उपमा, जैसे--तीर्थकर में इतना बल होता है कि वे मेरू को दण्ड और पृथ्वी को छत्र बना सकते है, पर वे वैसा करते नहीं। यहां सत् बल की असत् से उपमा है। (ख) असत को सत् उपमा, जैसे-सूर्य का पश्चिम दिशा के साथ संगम देखकर पूर्वदिशा ने अपना मुंह काला कर लिया, चूंकि स्त्रियां ईर्ष्या के बिना नहीं मिलती। इस वाक्य में असत् ईर्ष्या को सत् ईर्ष्या की उपमा है। (ग) असत् को असत् की उपमा, जैसे-चन्दन का फूल आकाश कमल के समान सुवासित है। न तो चन्दन के फूल होता है और न आकाश में कमल। यहां असत् से असत् की उपमा है। (घ) सत् को सत् की उपमा, जैसे-आंखें कमल के समान विकसित हैं। असत्य वचनयोग-असत्य भाषा बोलना। इसके दस भेद हैं : (१) क्रोध मिश्रित-जो वचन क्रोध में बोला जाए। (२) मान मिश्रित-जो वचन मान या अहंकार के आवेश में बोला जाए। (३) माया मिश्रित-कपट सहित बोलना, दूसरे को धोखा देने के लिए बोलना। (४) लोभ मिश्रित-लोभ में आकर बोलना। (५) राग मिश्रित-प्रेम, मोह के वशीभूत होकर बोलना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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