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________________ आठवां बोल ४. व्यवहार मनोयोग-मन का जो व्यापार सत्य भी नहीं है और असत्य भी नहीं है, वह है व्यवहार मनोयोग । आदेश-उपदेश देने का विचार करना व्यवहार मनोयोग है। वचनयोग-भाषा के द्वारा होने वाला आत्मा का प्रयत्न ववनयोग है। वह दो प्रकार का है-द्रव्य-वचनयोग और भाव-वचनयोग । भाषा वर्गणा के पुद्गलों को द्रव्य-वचनयोग कहा जाता है और जीव का जो भाषा-प्रवर्तक प्रयत्न होता है, वह भाव-वचनयोग कहलाता है। वचनयोग के चार भेद हैं-सत्य वचनयोग, असत्य वचनयोग, मिश्र वचनयोग और व्यवहार वचनयोग। सत्यवचनयोग-सत्य भाषा बोलना। सत्य भाषा के दस भेद हैं: (१) जनपद सत्य-जिस देश में जैसी भाषा बोलने में काम आती है, उस देश में वह जनपद सत्य है। जैसे-'चोखा' शब्द मारवाड़ में 'अच्छे' के अर्थ में और मेवाड़ में 'चावल' के अर्थ में व्यवहृत है। (२) सम्मत-सत्य--प्राचीन विद्वानों ने जिस शब्द का जो अर्थ मान लिया है, उस अर्थ में वह शब्द सम्मत-सत्य है। कमल और मेंढक दोनों ही पंक (कीचड़) में उत्पन्न होते हैं तो भी पंकज कमल को ही कहते हैं, मेंढक को नहीं। (३) स्थापना-सत्य--किसी भी वस्तु की स्थापना करके उसे उस नाम से कहना स्थापना-सत्य है। 'क'-इस आकार विशेष को ही 'क' कहना । एक के आगे दो शून्य लगाने से सौ और तीन शून्य लगाने पर एक हजार कहना। शतरंज के मोहरों पर हाथी, घोड़ा ऊंट, वजीर आदि कहना । (४) नाम-सत्य-गण विहीन होने पर भी किसी व्यक्ति विशेष या वस्तु विशेष का वैसा नाम रखकर, उस नाम से पुकारना नाम सत्य है। किसी धनहीन का नाम लक्ष्मीपति हो, उसे लक्ष्मीपति कहना।। (५) रूप सत्य--किसी रूप विशेष को धारण करने पर उस व्यक्ति को उस रूप विशेष से पुकारना, जैसे साधु का भेष देखकर किसी व्यक्ति को साधु कहना। (६) प्रतीति सत्य--(अपेक्षा सत्य)-एक वस्तु की अपेक्षा से दूसरी वस्तु को छोटी बडी, हल्की भारी आदि कहना प्रतीति सत्य है। अनामिका अंगुली को कनिष्ठा की अपेक्षा से बड़ी और मध्यमा की अपेक्षा से छोटी कहना।। (७) व्यवहार सत्य, लोक सत्य-जो बात व्यवहार में बोली जाए, वह व्यवहार सत्य है, जैसे पहुंचती तो है गाड़ी और कहते हैं डूंगरगढ़ आ गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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