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आठवां बोल
योग पन्द्रह
मनोयोग के चार भेद : वचनयोग के चार भेद : १. सत्य मनोयोग ५. सत्य वचनयोग २. असत्य मनोयोग ६. असत्य वचनयोग ३. मिश्र मनोयोग ७. मिश्र वचनयोग ४. व्यवहार मनोयोग ८. व्यवहार वचनयोग काययोग के सात भेदः ६. औदारिक काययोग १३. आहारक काययोग १०. औदारिक-मिश्र काययोग १४. आहारक-मिश्र काययोग ११. वैक्रिय काययोग १५. कार्मण काययोग १२. वैक्रिय-मिश्र काययोग
शरीर, वचन एवं मन के द्वारा होने वाले आत्म-प्रयत्न को योग कहते हैं। आत्म-प्रयत्न अपना संचालन कार्य पौद्गलिक शक्ति की सहायता से करता है, इसलिए वह पौद्गलिक शक्ति भी योग कहलाती है। जैन परिभाषा में इनको क्रमशः भावयोग एवं द्रव्ययोग कहते हैं। इन दोनों साधनों के बिना शारीरिक, वाचिक एवं मानसिक कोई भी क्रिया नहीं हो सकती। मनोयोग-मन के द्वारा होने वाला आत्मा का प्रयत्न मनोयोग है। वह दो प्रकार का है-द्रव्य-मनोयोग और भाव-मनोयोग। मन की प्रवृत्ति के लिए जो मनोवर्गणा के पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं, उनको कहते है द्रव्य-मनोयोग। उन गृहीत पुद्गलों की सहायता से जो मनन होता है, वह भाव-मनोयोग है। मनोयोग के चार भेद हैं :
१. सत्य मनोयोग-सत्य विषय में होने वाली मन की प्रवृत्ति । २. असत्य मनोयोग-असत्य विषय में होने वाली मन की प्रवृत्ति ।
३. मिश्र मनोयोग-कुछ अंशों में सत्य और कुछ अंशों में असत्य-ऐसे मिश्र अंशों में होने वाली मन की प्रवृत्ति ।
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