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________________ जीव-अजीव फेफड़े और दिमाग-सभी ने काम बंद कर दिया था। बाह्य पौद्गलिक सामग्री के अभाव में वे अपने काम नहीं कर सकते थे फिर भी उस व्यक्ति में आयुष्य-प्राण अपनी क्रिया कर रहा था और उसी के आधार पर जीवन टिका हुआ था। ज्योंही उसे बाह्य वातावरण का अनुकूल योग मिला, उसकी अवरुद्ध जीवन-शक्तियां पुनः क्रियाशील बन गईं। शरीर की समस्त क्रियाएं और समस्त अंगों का कार्य संचालन तभी तक हो सकता है जब तक आयुष्य-प्राण क्रियाशील होता है। उसके समाप्त होते ही समस्त क्रियाएं सम्पूर्ण रूप से बन्द हो जाती हैं और हम कहते हैं कि उस प्राणी की मौत हो चुकी है। प्रश्न-(क) शरीर हृष्ट-पुष्ट है। दिमाग, हृदय, फेफड़ा, पांचों इन्दियां आदि सभी स्वस्थ हैं। कोई खास बीमारी, दुर्घटना भी नहीं होती। फिर भी ऐसा स्वस्थ प्राणी अचानक मर जाता है, ऐसा क्यों ? (ख) शरीर वृद्ध है। देह जर्जरित है। भयानक विपत्ति आ पड़ी है, भयंकर बीमारी भी हुई है, फिर भी वह नहीं मरता, जीवन-काल को बढ़ाए ही जा रहा है। इसका कारण क्या है? . (ग) कहा जाता है कि मनुष्य की जितनी आयु होती है, उतना ही वह जीता है। आयुष्य को कोई भी एक मिनट घटा-बढ़ा नहीं सकता। फिर भी हम देखते हैं कि अग्नि में कूदने से निश्चय ही मृत्यु होगी, तीव्र विष खाने से मरना ही होगा। इसका रहस्य क्या है? उत्तर--आयु के पुद्गल स्वल्प होते हैं तब स्वस्थ प्राणी की भी दुर्घटना के बिना ही मृत्यु हो जाती है। आयु के पुद्गल अधिक होते हैं तब दुर्घटना और रोग होने पर भी प्राणी आश्चर्यपूर्ण ढंग से जीवित रह जाता है। आयु दो प्रकार की होती है : १. अपवर्तनीय-जो आयु बन्धकालीन स्थिति के पूर्ण होने से पहले भी भोगी जा सके, वह अपवर्तनीय आयु है। २. अनपवर्तनीय-जो आयु बंधकालीन स्थिति के पूर्ण होने से पहले न भोगी जा सके, वह अनपवर्तनीय आयु है। आगामी जन्म की आयु वर्तमान जन्म में ही निश्चित होती है। उस समय अगर परिणाम मंद हों तो आयु का बंध शिथिल होता है, जिससे निमित्त मिलने पर आयु की बंधी हुई काल-मर्यादा घट जाती है। इसके विपरीत अगर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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