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छठा बोल
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पुद्गल दृश्य पदार्थ। इसी कारण कई व्यक्तियों को जीव के अस्तित्व के विषय में संदेह होता है, पर उन्हें इतना तो समझ लेना चाहिये कि जो कुछ खाने-पीने, चलने-फिरने, बोलने आदि की प्रवृत्ति दीखती है, वह क्रिया है। उसका कर्ता अदृश्य जीव है। जीव जब तक शरीर में रहता है तब तक ये क्रियाएं होती हैं। इन क्रियाओं का सम्पादन करने वाली शक्ति प्राण या जीवन-शक्ति कहलाती है और इन क्रियाओं के सम्पादन में जिन पौद्गलिक शक्तियों की सहायता मिलती है, उन्हें पर्याप्ति कहा जाता है।
प्रश्न-किस-किस प्राण की कौन-कौन-सी पर्याप्ति कारण है?
उत्तर--पांच इंद्रिय प्राण का कारण है-इंद्रिय-पर्याप्ति। मनोबल, वचनबल और कायबल का क्रमशः कारण है-मनः पर्याप्ति, भाषा-पर्याप्ति और शरीर-पर्याप्ति। श्वासोच्छ्वास प्राण का कारण है-श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति।आयुष्य प्राण का कारण है-आहार-पर्याप्ति, क्योंकि आहार-पर्याप्ति के आधार पर ही आयुष्य-प्राण टिक सकता है।
प्राण या जीवन-शक्ति को समझने के लिए मृत्यु क्या है, यह समझना भी जरूरी है। वर्तमान शरीर-विज्ञान के अनुसार दिमाग, हृदय और फेफड़ों का कार्य-संचालन बन्द हो जाना ही मृत्यु है।
जब इस मानव-यंत्र के खास-खास पुर्जे जीर्ण होते हैं तब यह समूचा यंत्र बंद हो जाता है। मानव-शरीर के मुख्य अंग हृदय, फेफड़ा तथा दिमाग हैं। जब किसी बीमारी या दुर्घटना से ये तीनों जख्मी या जीर्ण हो जाते हैं या इनकी शक्ति क्षीण हो जाती है तब इनका काम बन्द हो जाता है। यही है मृत्यु ।
परन्तु इस सिद्धांत के विपरीत हमें ऐसे भी अनेक उदाहरण मिलते हैं कि हृदय की गति कई घण्टों तक बंद रहने के बाद भी मनुष्य जीवित रह सकता है। अड़तालीस घंटों तक श्वास की गति एवं हृदय की गति एकदम बंद रहने के पश्चात् भी मानव जीवित पाया गया है। ऐसे भी कई उदाहरण हैं, जिनमें मानव चालीस दिनों तक संदूक में (जिसमें हवा के प्रवेश और निकास का कोई भी छिद्र न हो) बंद रहने के बाद भी जीवित निकला है।
जैन सिद्धांत के अनुसार जीवन-शक्ति के स्रोत दिमाग , हृदय और फेफड़े ही नहीं, किंतु दस प्राण हैं। उन दसों में किसी एक शक्ति का काम बंद हो जाने पर मृत्यु नहीं होती। जब तक आयुष्यप्राण क्रियाशील है तब तक किसी एक शक्ति का काम बंद हो जाने पर भी प्राणी जीवित रह सकता है। उक्त उदाहरण में चालीस दिनों तक संदूक में बंद प्राणी के पांचों इंद्रियां, हृदय,
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