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छठा बोल
प्राण दश
१. श्रोत्रेन्द्रिय प्राण ६. मनोबल २. चक्षुरिन्द्रिय प्राण ७. वचनबल ३. प्राणेन्द्रिय प्राण ८. कायबल ४. रसनेन्द्रिय प्राण ६. श्वासोच्छ्वास प्राण १. स्पर्शनेन्द्रिय प्राण १०. आयुष्य प्राण
प्राण अर्थात् जीवन-शक्ति। जिनके संयोग से यह जीव जीवन-अवस्था को प्राप्त हो और वियोग से मरण-अवस्था को प्राप्त हो, उनको प्राण कहते हैं। प्राण जीव के बास्य लक्षण हैं। ये जीव हैं, जीते हैं--ऐसी प्रतीति प्राणों से ही होती है। प्राणों के बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता। प्राणों की क्रिया होती रहती है--यही संसारी जीव का जीवन है।
____ पांचों ही इन्द्रियों की जो ज्ञान करने की शक्ति है उसे कहते हैं-पांच इंद्रिय-प्राण । मनन करने, बोलने और शारीरिक क्रिया करने की शक्ति को कहते हैं--मनोबल, वचनबल और कायबल। बल और प्राण का अर्थ एक ही है। पुद्गलों को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करने और छोड़ने की शक्ति को कहते हैं--श्वासोच्छ्वास प्राण । अमुक भव में अमुक काल तक जीवित रहने की शक्ति को कहते हैं--आयुष्य प्राण।
प्रश्न--प्राण और पर्याप्ति में क्या भेद है ?
उत्तर--प्राण जीव की शक्ति है और पर्याप्ति जीव द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्गलों की शक्ति है। पर्याप्ति सहकारी कारण है और प्राण कार्य है। आत्मा की जितनी भी मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्ति होती है, वह सब बास्य द्रव्यापेक्षी होती है--पुद्गलों की सहायता से ही होती है। वायुयान आकाश में तभी घूम सकता है जब कि उसे ईन्धन आदि बास्य सामग्री की सहायता मिले। जीव की मन, वचन और शरीर से संबंध रखने वाली कोई भी ऐसी प्रवृत्ति नहीं, जो पुद्गल द्रव्य की सहायता के बिना हो सके। अतएव संसार अवस्था में जीव और पुद्गल का घनिष्ठ संबंध रहता है। जीव अदृश्य पदार्थ है और
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