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________________ छठा बोल परिणाम तीव्र हों तो आयु का बंधन भी गाढ़ होता है, जिससे निमित्त मिलने पर भी बंधी हुई काल मर्यादा घटती नहीं। तीव्र परिणाम-जनित गाढ़ बंध वाली आयु शस्त्र, विष, दुर्घटना आदि के प्रयोग होने पर भी अपनी नियत काल-मर्यादा से पहले पूर्ण नहीं होती, परन्तु मंद परिणाम-जनित शिथिल बंध वाली आय शस्त्र, विष और दुर्घटना का योग होते ही अपनी नियत काल-मर्यादा समाप्त होने के पहले ही अन्तर्मुहूर्त मात्र में भोग ली जाती है। आयु के इस शीघ्र भोग को अपवर्तना या अकाल मृत्यु कहते हैं और नियत स्थिति तक आयु को भोग लेने को अनपवर्तना, काल-मृत्यु या स्वाभाविक मृत्यु कहते हैं। अपवर्तनीय आयु सोपक्रम (उपक्रम-सहित) होती है। तीव्र शस्त्र, तीव्र अग्नि आदि जिन निमित्तों से अकाल मृत्यु होती है, उन निमित्तों का प्राप्त होना उपक्रम है। अनपवर्तनीय आयु सोपक्रम और निरुपक्रम-दो प्रकार की होती है। इस आयु को अकाल-मृत्यु लाने वाले उक्त निमित्तों की प्राप्ति होती भी है और नहीं भी होती । उक्त निमित्त मिलने पर भी अनपवर्तनीय आयु वालों की आयु पूर्ण नहीं होती, वे जीवित ही रहते हैं। वे अकाल मृत्यु किसी भी हालत में प्राप्त नहीं कर सकते। हरेक प्रकार की दुर्घटना में वे बच निकलते नारक, देव, असंख्यात वर्षजीवी मनुष्य और तिर्यञ्च, चर्मशरीरी और त्रिषष्टिशलाकापुरुष--तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, अनपवत'नीय आयुवाले होते हैं। उनकी आयुस्थिति जितनी नियत होती है उतनी ही रहती है। इसके पहले वे किसी भी हालत में मर नहीं सकते। सामान्य मनुष्य और तिर्यञ्च अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय-दोनों प्रकार की आयु वाले होते हैं। निमित्त मिलने पर उनकी अकाल मृत्यु हो भी सकती है और निमित्त न मिलने पर अकाल मृत्यु नहीं भी होती । कर्मवाद के अनुसार इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार होगा कि जो आयुष्य-कर्म चिरकाल तक भोगा जाने वाला होता है, वह एक साथ जल्दी ही भोग लिया जाता है। उसका कोई भी भाग बिना भोगे नहीं छूटता। उदाहरणार्थ : १. जैसे यदि घास की सघन राशि में एक तरफ से छोटी-सी अग्नि की चिनगारी छोड़ दी जाए तो वह चिनगारी एक-एक तिनके को क्रमशःजलाते-जलाते उस सारी राशि को जलाने में काफी समय लगा सकती है, परन्तु वही चिनगारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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