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तीसरा बोल
शस्त्र के योग से वह अचित्त हो जाती है।
१. वनस्पतिकाय-आम, अंगूर, केला, सब्जी, आलू, प्याज, लहसुन, आदि वनस्पतिकाय हैं। उसके दो भेद किए गए हैं- साधारण और प्रत्येक ।
साधारण-जहां एक शरीर में अनन्त जीव हों, उसे साधारण वनस्पतिकाय कहते हैं। सभी प्रकार के कन्द-मूल साधारण वनस्पति हैं।
प्रत्येक-जिसके एक-एक शरीर में एक-एक जीव हों, उसे प्रत्येक वनस्पतिकाय कहते हैं। जैसे
(१) वृक्ष-आम आदि। (२) लता--करेला, ककड़ी आदि। (३) तृण-दूब आदि। (४) हरितकाय--चौलाई आदि पत्ते वाले शाक। (५) जलरुह-जल में उत्पन्न होने वाले कमल आदि।
प्रत्येक वनस्पति में शरीर का निर्माण करने वाला मूलतः एक ही जीव होता है किन्तु उसके आश्रित असंख्य जीव होते हैं। द्वीन्द्रिय आदि जीवों में यह बात नहीं है। उनमें प्रत्येक जीव अपने शरीर का स्वतंत्र निर्माण करता
वनस्पतिकायिक जीवों के उत्पन्न होने के मुख्यतया आठ प्रकार माने गए हैं : (१) अग्र-बीज-वह वनस्पति, जिसका सिरा ही बीज हो। जैसे-कोरंट
(कट्ठसरिया) का वृक्ष आदि। (२) मूल-बीज-वह वनस्पति, जिसका मूल ही बीज हो। जैसे-कंद आदि । (३) पर्व-बीज-वह वनस्पति, जिसकी गांठे ही बीज हों। जैसे-ईख
आदि। (४) स्कन्ध-बीज-वह वनस्पति, जिसके स्कन्ध ही बीज हों। जैसे-थूहर
आदि। (५) बीज-रुह--वह वनस्पति, जो बीज से उत्पन्न हो। जैसे-गेहूं, जो
आदि। (६) सम्मूछिम-वह वनस्पति, जो स्वयमेव पैदा होती है, जैसे-अंकुर
आदि। (७) तृण-तृणादि घास। (८) लता-चम्पा, चमेली, ककड़ी, खरबूज, तरबूज आदि की बेलें।
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