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जीव-अजीव
ज
प्रश्न-यदि मिट्टी की एक डली व पानी की एक बूंद में असंख्य जीव हैं तो शरीर कितने हुए ?
उत्तर--असंख्य।
जब इन असंख्य जीवों का एक साथ ज्ञान कराने की आवश्यकता होती है तब हम सब जीवों का अभेद दृष्टि से 'पृथ्वीकाय', 'अप्काय' आदि शब्दों के द्वारा ज्ञान करा सकते हैं।
१. पृथ्वीकाय-मिट्टी, मुरड़, पत्थर, हिंगुल, हरताल, हीरा, पन्ना, कोयला, सोना, चांदी आदि सब पृथ्वीकायिक जीव हैं। मिट्टी की एक डली में असंख्य पृथक्-पृथक् जीव होते हैं।
पृथ्वीकायिक जीवों को जब तक विरोधी शस्त्र न लगे तब तक पृथ्वी सचित्त (सजीव) होती है। विरोधी-शस्त्र के योग से वह अचित्त (निर्जीव) हो जाती है।
२. अप्काय बरसात का जल, ओस का जल, समुद्र का जल, धूअर का जल, कुएं, बावड़ी तालाब, झील और नदी का जल आदि सब अप्कायिक जीव हैं। जल की एक बूंद में पृथक्-पृथक् असंख्य जीव होते हैं।
जब तक विरोधी शस्त्र न लगे तब तक जल सचित्त होता है। विरोधी शस्त्र के योग से वह अचित्त हो जाता है।
३. तेजस्काय-अग्नि, विद्युत, उल्का आदि सब तैजसकायिक जीव हैं। अग्नि की एक छोटी-सी चिनगारी में पृथक्-पृथक् असंख्य जीव होते हैं। उनको जब तक विरोधी शस्त्र न लगे तब तक अग्नि सचित्त होती है। विरोधी शस्त्र के योग से वह अचित्त हो जाती है।
४. वायुकाय-वायु के मुख्य पांच भेद हैं : (१) उत्कलिका वायु--जो वायु ठहर-ठहर कर चले। (२) मण्डलिका वायु--जो वायु चक्र खाती हुई चले। (३) घनवायु--जो वायु रत्नप्रभा आदि पृथ्वी के अथवा विमानों के नीचे
है। यह वायु जमी हुई बर्फ की भांति गाढ़ी एवं आधारभूत है। (४) गुजावायु--जो वायु चलती हुई शब्द करे। (५) शुद्धवायु-जो वायु उपरोक्त गुणों से रहित तथा मन्द-मन्द चलने
वाली हो। वायुकाय में भी पृथक्-पृथक् असंख्य जीव होते है। जब तक विरोधी शस्त्र न लगे तब तक वायु सचित्त होती है। विरोधी
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