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________________ तीसरा बोल काय छह १. पृथ्वीकाय ४. वायुकाय २. अपकाय १. वनस्पतिकाय ३. तेजस्काय ६. त्रसकाय संसारी जीवों के छह समूह हैं। ये तरह-तरह के पुद्गलों से बने हुए शरीरों के आधार पर किए गए हैं। काय शब्द का अर्थ शरीर है। जिनका शरीर पृथ्वी, मिट्टी आदि है, वे जीव पृथ्वीकाय कहलाते हैं। पानी-शरीरवाले अपकाय, अग्नि-शरीर वाले तेजसकाय, वायु-शरीर वाले वायुकाय, वनस्पतिशरीर वाले वनस्पतिकाय और हिलने-चलने योग्य शरीरवाले त्रसकाय कहलाते इनमें पहले पांच काय स्थावर हैं। जिनका सुख-दुःख साक्षात् न देखा जा सके, जो चलते-फिरते न हों, जिनके स्थावर नामकर्म का उदय हो, वे जीव स्थावर कहलाते हैं। जो जीव सुख-दुःख प्रकट करते हैं एवं जिनमें सुख की प्रवृत्ति व दुःख की निवृत्ति के लिए चलने फिरने की शक्ति होती है, जिनके त्रस नामकर्म का उदय हो, वे जीव त्रस कहलाते हैं। सम्मुख आना, मुड़कर जाना, शरीर का संकोच करना, शरीर को फैलाना, शब्द करना, भय से इधर-इधर घूमना, भाग जाना, आने-जाने का ज्ञान होना, वंश वृद्धि-ये सब जीवों के लक्षण हैं। ' अग्नि और वायु, ये दोनों हलन-चलन करते हैं, पर सुख-दुःख की प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के लिए नहीं। इसलिए ये वास्तविक त्रस नहीं कहे जाते । ये गति-त्रस हैं। जीव अपने कर्मों के अनुसार जिन-जिन पृथ्वी, पानी आदि को शरीर के रूप में पाता है उन-उन संज्ञाओं से उसका नामकरण किया जाता है। __'काय' शब्द का अर्थ समूह भी है। इससे यह जानने को मिलता है कि मिट्टी की एक डली और पानी की एक बूंद में असंख्य जीव होते हैं। उनके अलग-अलग शरीर समुदाय रूप में रहते हैं। १. आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से जीवनमात्र में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-समायोजन व्यवस्था संवेदनशैलता, संचारव्यवस्था, उद्दीपन, चयापचय, वृद्धि, विकास और प्रजनन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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