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इक्कीसवां बोल
राशि दो
१. जीव राशि २. अजीव राशि
जब हम संसार-भर की वस्तुओं को पृथक्-पृथक् करने लगते हैं, तब उनको कई हजार श्रेणियों में पहुंचा देते हैं, जैसे-मनुष्य, गाय, भैंस, ऊंट, मकान, कोट, बर्तन आदि और जब वापस मुड़ते हैं-एकीकरण की ओर दृष्टि डालते हैं, तब हमें मूल रूप में दो ही पदार्थ-राशियां मिलती हैं-एक चेतन-ज्ञानवान आत्माओं की राशि और दूसरी अचेतन-ज्ञान-रहित जड़ पदार्थों की राशि। हम यह निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि जगत् में उन दो राशियों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है अथवा यों कहा जा सकता है कि जगत् का अस्तित्व इन दोनों के अस्तित्व पर ही निर्भर है। षड् द्रव्य और नौ तत्त्व इनसे पृथक् नहीं हैं।
जब हम विश्व की स्थिति को समझने के लिए आगे बढ़ते हैं, तब इनकी संख्या दो से छह हो जाती है।
___ आत्मा की मुक्ति कैसे हो सकती है? जीव या अजीव की कौन-कौन-सी दशाएं मुक्ति की बाधक एवं साधक हैं? यह जिज्ञासा इनको दो से नौ में ले जाती है। वहां अजीव के चार (अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध) तथा जीव के पांच विभाग (जीव, आश्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष) हो जाते हैं।
परन्तु वास्तव में तत्त्व दो ही हैं। ये छह और नौ तो एक विशेष उपयोगिता या समझने की सुविधा के लिए किये गये हैं। हम इन दोनों विभिन्न वर्गों को जाने बिना यह कभी नहीं जान सकते कि विश्व के कार्य-संचालन में जीव और अजीव का क्या-क्या उपयोग है?
धर्मास्तिकाय विश्व की गतिशीलता-सक्रियता में सहायक है। दुनिया में जो कुछ हलन-चलन, कम्पन, सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्पन्दन तक होता है, यह सब उसी की सहायता से होता है। अधर्मास्तिकाय ठीक इसी का प्रतिपक्षी है। स्थिरता में उसका उपकार है। दूसरे शब्दों में, हम इनमें से प्रथम को सक्रियता का सहायक एवं दूसरे को निष्क्रियता का सहायक कह सकते हैं। यद्यपि सक्रियता
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