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बीसवाँ बोल
जिस पुद्गल -समूह से तैजस शरीर बनता है, उसे तैजस-वर्गणा कहते
जिस पुद्गल समूह से कार्मण शरीर बनता है, उसे कार्मण-वर्गणा कहते
जिन पुद्गलों को श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण किया जाता है, उन्हें श्वासोच्छ्वास- वर्गणा कहते हैं।
हैं ।
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आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा सम्मत सौ से अधिक तत्त्वों का पुद्गल द्रव्य में समावेश हो जाता है। वैज्ञानिकों की परिभाषा में तत्त्व वे पदार्थ हैं, जो किसी भी रासायनिक क्रिया से अपने स्वरूप और धर्म का परित्याग नहीं करते । सोना, चांदी, लोहा, गन्धक, पारा--ये तत्त्व हैं। इनको गरम या ठण्डा करके तरल या वाष्पीय बना सकते हैं, पर इनमें से कोई दूसरा पदार्थ नहीं निकल सकता। लोहा लोहा ही रहेगा और गन्धक गन्धक ही। दूसरा कोई पदार्थ, जो तत्त्वों के मेल से बनता है, उसे मिश्र कहते हैं, जैसे पानी मिश्र है। पानी के एक अणु में दो परमाणु हाईड्रोजन और एक परमाणु ऑक्सीजन का होता है । तत्त्व और मिस्र (Elements and Compounds ) -- ये दोनों वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श युक्त हैं, अतः पुद्गल द्रव्य हैं। अन्य दार्शनिक जिन मूर्तिमान वस्तुओं के लिए भौतिक शब्द का प्रयोग करते हैं, जैन-दर्शन उनके लिए पौद्गलिक शब्द का प्रयोग करता है।
६. जीवास्तिकाय
जीव का अर्थ है--प्राण धारण करनेवाला । अस्तिकाय का अर्थ है -- प्रदेश -समूह |
प्रश्न--प्राण धारण करने वाले ही जीव हैं, इस परिभाषा में मुक्त का समावेश कैसे होगा
उत्तर --प्राण दो तरह के होते हैं--द्रव्य-प्राण और भाव-प्राण । द्रव्य-प्राण दस हैं, जो छठे बोल में बतलाए जा चुके हैं। भाव-प्राण ज्ञान, दर्शन आदि हैं। संसारी जीवों में दोनों ही प्रकार के प्राण पाये जाते हैं। मुक्त जीवों में सिर्फ भाव-प्राण होते हैं।
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आत्माओं
द्रव्य से जीव अनन्त द्रव्य है । क्षेत्र से वह लोक-प्रमाण है । काल से वह अनादि-अनन्त है। भाव से वह अरूपी है। गुण से वह चेतन गुणवाला है।
जीव के प्रदेश असंख्य हैं। ऐसे असंख्य प्रदेश वाले जीव अनन्त हैं । वे धर्मास्तिकाय आदि की तरह असंख्य प्रदेशात्मक एक ही अविभाज्य पिण्ड नहीं
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