________________
१२६
जीव-अजीव
कैसे सकता है जबकि उसका काला रंग स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है ? जिसका अस्तित्व ही नहीं, उसमें वर्ण भी नहीं हो सकता। अतः अन्धकार पौद्गलिक
है।
पुद्गल का संसारी जीवों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है और वह अनेक प्रकार से उनके काम आता है।
'द्रव्यनिमित्वं हि संसारिणां वीर्यमुपजायते अर्थात् संसारी जीवों का जितना भी वीर्य-पराक्रम है, वह सब पुद्गलों की सहायता से होता है। पुद्गल किस प्रकार संसारी जीवों के व्यवहार में आते हैं, इसे समझने के लिए भिन्न-भिन्न पुद्गल-वर्गणाओं को जान लेना जरूरी है।
वर्गणा-समान जातिवाले पुद्गल स्कन्ध। उनके अनेक भेद हैं. जैसे-मनोवर्गणा, भाषा-वर्गणा, शरीर-वर्गणा, औदारिक-वर्गणा, वैक्रिय-वर्गणा, आहारक-वर्गणा, तैजस-वर्गणा, कार्मण-वर्गणा, श्वासोच्छ्वास-वर्गणा।
जिस पुद्गल-समूह की सहायता से आत्मा विचार करने में प्रवृत्त होती है उसको मनोवर्गणा कहते हैं।
जिस पुद्गल-समूह की सहायता से आत्मा बोलने में प्रवृत्त होती है उसको भाषा-वर्गणा कहते हैं।
जिस पुद्गल-समूह की सहायता से आत्मा के पौद्गलिक सुख-दुःख की अनुभूति और हलन-चलन की क्रिया होती है, उसको शरीर-वर्गणा कहते हैं।
जिस पुद्गल-समूह से हमारा शरीर बनता है, उसे औदारिक-वर्गणा कहते हैं।
जिस पुद्गल-समूह से इच्छानुसार हम आकृतियों को बदल सकें--ऐसा शरीर बनता है, उसे वैक्रिय-वर्गणा कहते हैं।
जिस पुद्गल-समूह से विचित्र शक्तिशाली पुतला बनाया जाता है, उसे आहारक वर्गणा कहते हैं। एक विशिष्ट योग-शक्ति-वाले योगी को जब कोई व्यक्ति गहन विषय का प्रश्न पूछता है और वह योगी उसे उत्तर देने में असमर्थ हो तब आहारक-वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर वह योगी एक सुन्दर आकृति का पुतला बनाता है और उसे सर्वज्ञ के पास भेजकर उस प्रश्न का उत्तर मंगवाता है। पुतला प्रश्न का उत्तर लेकर वापस आता है। इस प्रकार योगी प्रश्नकर्ता को समचित उत्तर दे देता है। ये सब क्रियाएं इतने कम समय में होती हैं कि पूछनेवाले को यह पता ही नहीं लगता कि मैंने अपने प्रश्न का उत्तर कुछ विलम्ब से पाया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org