________________
बीसवां बोल
परमाणु के साथ सम्बन्ध होने में स्निग्धत्व (चिकनापन ) और रूक्षत्व ( रूखापन ) की अपेक्षा रहती है । केवल संयोग मात्र से परमाणुओं के द्विअणु आदि स्कन्ध नहीं बनते। स्निग्धत्व और रूक्षत्व पूर्व-कथित आठ स्पर्शो में दो स्पर्श हैं। स्पर्श पुद्गल का स्वभाव है, इसलिए बन्ध भी पुद्गल की एक अवस्था है। अमूर्त द्रव्यों का बंध नहीं होता क्योंकि वे अविभाज्य हैं, उनके कोई पृथक् भाग नहीं हैं। केवल पुद्गल द्रव्य ही एक ऐसा द्रव्य है, जो एक-दूसरे के साथ मिलता है । जब अनन्त-परमाणु मिलते हैं तब अनन्त- प्रदेशी स्कन्ध बन जाता है। कई अनन्त- प्रदेशी स्कंधों से किसी स्थूल वस्तु का निर्माण हो जाता है।
१२५
सूक्ष्मता -स्थूलता ये भी पुद्गल में ही प्राप्त होती हैं । पुद्गल के सिवाय अन्य द्रव्य छोटे-बड़े, हल्के भारी नहीं होते । पौद्गलिक वस्तु कोई छोटी होती है, कोई बड़ी, कोई हल्की होती है और कोई भारी । जिस वस्तु के पुद्गल अधिक फैले हुए होते हैं, वह बड़ी कहलाती है और जिस वस्तु के पुद्गल संकुचित होते हैं, वह छोटी कहलाती है । लघु स्पर्श वाली वस्तु का वजन कम होता है, अतः हल्की कहलाती है और गुरू स्पर्श वाली वस्तु का वजन अधिक होता है, अतः वह भारी कहलाती है।
छाया - छाया भी पौद्गलिक है। पौदगलिक पदार्थों के पुद्गल प्रतिक्षण परिवर्तित होते रहते हैं। पौद्गलिक वस्तुएं चय- अपचय धर्म वाली और रश्मियुक्त होती हैं। प्रतिक्षण उनमें से तदाकार रश्मियां निकलती रहती है, जो अपने अनुकूल सामग्री को पाकर उसी रूप में परिणत हो जाती हैं। इस पौद्गलिक परिणति का नाम छाया है। अस्वच्छ पदार्थ में होने वाली छाया दिन को श्याम और रात को काली होती है तथा स्वच्छ पदार्थ में छाया अपने-अपने आकार के जैसी ही होती है ।
प्रकाश - अन्धकार - प्रकाश भी पौद्गलिक है । अन्धकार पदार्थ - प्रतिरोधक ( आच्छादक) पुद्गल है । अन्धकार प्रकाश का अभाव नहीं परन्तु प्रकाश का विरोधी भावात्मक द्रव्य है । जैसे सघन वर्षा से अन्य पदार्थ तिरोहित हो जाते हैं, केवल वही दिखती है, वैसे ही सघन अन्धकार भी अन्य पदार्थों को आच्छादित कर देता है और वही दिखाई देता है। दीवार, छत आदि जैसे अपने से भिन्न वस्तुओं को ढकने वाले होते हुए भी भावात्मक हैं, वैसे ही अन्धकार भी पदार्थों को ढकनेवाला भावात्मक द्रव्य है। वर्षा बन्द होने और दीवार आदि के फट जाने से परे की वस्तु दीखने लग जाती है, वैसे ही अन्धकार का नाश होने से समस्त पदार्थ दृष्टिगोचर होने लग जाते हैं । अन्धकार अभावात्मक हो ही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org