SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ जीव-अजीव जितने क्षेत्र को रोकता है उससे अधिक एक सेर लोहा और उससे अधिक एक सेर मिट्टी और उससे अधिक एक सेर रूई। यद्यपि रूई से मिट्टी का, मिट्टी से लोहे का, लोहे से पारे का पुद्गल प्रचय अधिक है। रूई से मिट्टी, मिट्टी से लोहे, लोहे से पारे की सघन परिणति है, अतएव क्षेत्र का रोकना भी क्रमशः अल्प, अल्पतर होता है। जैसे एक अनंत-प्रदेश स्कंध असंख्य-प्रदेशों में समा जाता है, वैसे ही अनंत-अनंत प्रदेशीस्कंध भी समा जाते हैं। एक कमरे में जहां एक दीपक का प्रकाश व्याप्त हो जाता है, वहां सैकड़ों दीपकों का प्रकाश भी समा सकता है। निबिड़तम लोहपिण्ड में भी धौंकनी की हवा से प्रेरित अग्नि-कण घुस जाते हैं और जब बुझाते हैं तब पानी के सूक्ष्म कण उसी लोह-पिण्ड के अन्दर घुस जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि पुद्गल-परिणति की विचित्रता ही अल्प और अधिक क्षेत्र के अवगाहन का कारण है। ___ काल से पुद्गलास्तिकाय अनादि-अनन्त है। भाव से वह रूपी-मूर्ण है। गुण से वह वर्ण, गंध, रस और स्पर्श गुण वाला है। हम जिनको आंखों से देखते हैं, जीभ से चखते हैं, नाक से संघते हैं, त्वचा से छूते हैं, वे सब वस्तुएं पौद्गलिक हैं, इसलिए पुद्गल द्रव्य के लक्षण रूप, रस, गंध और स्पर्श बतलाए गए हैं। पुद्गल द्रव्य मूर्च है। मूर्त्तवान वही द्रव्य हो सकता हैं जिसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण हों। पुद्गल के सिवाय अन्य पांचों द्रव्य अमूर्त हैं, अरूपी हैं। उनमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण नहीं होते, इसीलिए हम आत्मा और धर्मास्तिकाय आदि को देख नहीं सकते। केवलज्ञान को छोड़कर शेष चार ज्ञानों का विषय केवल पुद्गल-द्रव्य ही है। अमूर्त द्रव्य सिर्फ केवलज्ञान का ही विषय है। शब्द, गंध सूक्ष्मता, स्थूलता, छाया, प्रकाश, अन्धकार आदि सभी पुद्गल द्रव्य की अवस्थाएं हैं। शब्द-शब्द पौद्गलिक है। उसमें स्पर्श आदि पुद्गल के लक्षण विद्यमान हैं। पत्थर स्पर्शयुक्त है, उसके संघर्ष से शब्द उठता है, उसी प्रकार शब्द के टकराने से गुफा आदि में प्रतिनाद उठता है। टेलीफोन, टेलीग्राफ, वायरलेस, फोनोग्राम आदि से शब्द का पौद्गलिकत्व स्पष्ट ही है। यंत्र सिर्फ मूर्त द्रव्य को ही ग्रहण कर सकते हैं, अमूर्त द्रव्य को नहीं। पुद्गल के सिवाय अन्य सब द्रव्य अमूर्त हैं, अतः शब्द पौद्गलिक हैं। बंध-बंध का अर्थ है एकत्व-परिणाम। इस एकत्व-परिणाम अर्थात् पारस्परिक सम्बन्ध से ही पौद्गलिक स्कन्ध बनता है। एक परमाणु का दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy