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बीसवां बोल
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जो परिणमन का हेतु है, वर्तता रहता है, वह काल लोक में भी होता है और अलोक में भी। उसे निश्वय-काल कहते हैं और मुहूर्त, रात-दिन आदि विभाग वाला काल केवल मनुष्य-लोक में ही होता है, उसके बाहर नहीं। उसका आधार सूर्य और चन्द्रमा की गति है।
जो काल जानी हुई संख्या द्वारा गिना जा सकता है, वह संख्येयः, जो उस संख्या में नही आ सकता, सिर्फ उपमा के द्वारा गिना जा सकता है वह असंख्येय-जैसे पल्योपम, सागरोपम आदि । जिस काल का अन्त ही नहीं है, वह अनन्त कहा जाता है।
१. पुद्गलास्तिकाय-जो वर्ण, गंध, रस, स्पर्श युक्त हो और जिसमें मिलने और पृथक् होने का स्वभाव विद्यमान हो, उसे पुद्गल कहा जाता है।
परमाणु भी पुद्गल का विभाग है, परन्तु यहां काय शब्द का प्रयोग किया गया है, अतः अस्ति का अर्थ केवल प्रदेश ही संगत है। समुदित परमाणु ही प्रदेश कहलाते हैं, जैसे--दो संयुक्त परमाणुओं को द्वि-प्रदेशी स्कन्ध कहा जाता है।
द्रव्य से पुद्गलास्तिकाय अनन्त-द्रव्य है। पुद्गल-द्रव्य अन्य द्रव्यों की तरह अविभाज्य पिण्ड नहीं किन्तु विभाज्य है। परमाणु पृथक्-पृथक् हो जाते हैं और समुदित होकर पुनः स्कन्ध रूप में परिणत हो जाते हैं।
क्षेत्र से वह लोक-प्रमाण है।
प्रश्न-लोकाकाश के प्रदेश असंख्य हैं और पुद्गल अनंतानंत हैं। इस अवस्था में लोक-प्रमाण का अवगाह कैसे घट सकता है?
उत्तर --परिणमन की विचित्रता से परिमित लोक में अनंत पुद्गल रह सकते हैं। एक परमाणु एक आकाश प्रदेश में रह सकता है, वैसे द्वि-प्रदेशी, संख्यात-प्रदेशी, असंख्यात-प्रदेशी, यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध भी परमाणु की भाति सघन परिणति के योग से एक आकाश -प्रदेश में रह सकते हैं और जब वे विकसित होते हैं तब द्वि-प्रदेशी दो आकाशप्रदेश में एवं असंख्य प्रदेशी और अनन्त-प्रदेशी असंख्य प्रदेशात्मक लोक में फैल सकते हैं। किन्तु वे अपने प्रमाण से अधिक क्षेत्र में नही फैल सकते, जैसे-द्वि-प्रदेशी स्कंध दो-प्रदेश में फैल सकता है, तीन प्रदेश में नहीं। अल्प और अधिक प्रदेशों का अवगाहन करने में सघन और असघन परिणति ही कारण है। अधिक परमाणु वाला स्कंध भी सघन परिणति से अल्प क्षेत्र में रह सकता है और उसकी अपेक्षा अल्प परमाणु वाला स्कंध असघन परिणति से उससे अधिक क्षेत्र में रहता है। एक सेर पारा
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