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________________ કરર जीव-अजीव १२२६ ३७७३ पर निर्भर है। जब लोक-स्थिति अनादि-अनन्त है, तब काल का अनादि-अनंत होना भी अनिवार्य है। काल-विभाग-काल के विभाग द्वारा ही आयुष्य आदि का माप किया जाता है। वह इस प्रकार है-- ____ अविभाज्य काल का नाम समय है। समय को समझने के लिए शास्त्रों में कई उदाहरण उपलब्ध हैं। एक शक्तिशाली युवक एक जीर्ण तंतु को जितने समय में फाड़ता है, उसके असंख्यातवें भाग का नाम समय है। चक्षु के उन्मेष में जो काल लगता है, उसके असंख्यातवें भाग का नाम समय है। बिजली का प्रवाह अति अल्पकाल में लाखों मीलों तक पहुंच जाता है और वह अत्यंत सूक्ष्म काल में जितने क्षेत्र का अवगाहन करता है यदि उनके भाग किए जाएं तो असंख्य होते हैं। उस असंख्यातवें भाग को समय कहते हैं। इन उदाहरणों के आधार पर समय की सूक्ष्मता का अनुमान लगाया जा सकता है।' १. काल के विभाग : अविभाज्य काल = एक समय। असंख्य समय = एक आवलिका। २५६ आवलिका = एक क्षुल्लक भव (सबसे छोटी आयु) २२२३ - आवलिका __ = एक उच्छ्वास-निश्वास आवलिका या साधिक १७ क्षुल्ल्क भव या = एक प्राण एक श्वासोच्छ्वास ७ प्राण = एक स्तोक ७ स्तोक = एक लव ३८॥ लव एक घड़ी (२४ मिनट) ७७ लव = दो घड़ी। अथवा ६५५३६ क्षुल्लक भव। या १६७७७२१६ आवलिका अथवा ३७७३ प्राण । अथवा एक मुहूर्त (सामायिक काल) ३० मुहूर्त = एक दिन-रात (अहोरात्र) = एक पक्ष २ पक्ष = एक मास २ मास ३ऋतु = एक अयन २ अयन ५साल ७० कोड़ाक्रोड ५६ लाख क्रोड़वर्ष = एक पूर्व असंख्य वर्ष = एक पल्योपम १० कोड़ाक्रोड़ पल्योपभ = एक काल-चक्र २० क्रोडाकोड़सागर अनन्त कालचक्र = एक पुद्गल-परावर्तन ४४४६ - २४५६ ४४४६ - १७७३ 494 एक युग = एक काल-चक्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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