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बीसा बोल
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गति के आधार पर ही किया जाता है। दिन,रात, पक्ष आदि जो स्थूल काल-विभाग हैं, वे सूर्य आदि की नियत गति पर अवलंबित होने के कारण उससे जाने जा सकते हैं। समय, आवलिका आदि सूक्ष्म काल-विभाग उससे नहीं जाने जा सकते। किसी एक स्थान में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बीच के समय को दिन कहते हैं। इसी प्रकार सूर्यास्त से सूर्योदय तक के काल को रात कहते हैं। दिन और रात का तीसवां भाग मुहूर्त है। पन्द्रह दिन-रात का एक पक्ष होता है। दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन, दो अयन का एक वर्ष, पांच वर्ष का एक युग माना गया है। यह सब काल-विभाग सूर्य की गति पर निर्भर करता है। जो क्रिया चालू है वह वर्तमान काल, जो होने वाली है वह भविष्यत् काल और जो हो चुकी है वह भूतकाल है।
काल अस्तिकाय नहीं है। वह वास्तविक द्रव्य नहीं, काल्पनिक है। अनागतस्यानुत्पत्ते, उत्पन्नस्य च नाशतः। प्रदेशप्रचयाभावात्, काले नैवास्तिकायता।।
अर्थात-अनागत काल की उत्पत्ति हुई नहीं, उत्पन्न काल का नाश हो जाता है, और प्रदेशों का प्रचय होता नहीं, अतः काल अस्तिकाय नहीं है।
द्रव्य से काल अनन्त द्रव्य है। क्षेत्र से वह मनुष्य क्षेत्र (ढाई द्वीप) प्रमाण है। काल से वह अनादि-अनन्त है। भाव से वह अमूर्त है। गुण से वह वर्तमान गुण वाला है।
प्रश्न-काल जब वास्तविक द्रव्य ही नहीं तो फिर उसकी कल्पना किसलिए है और उसके अनन्त द्रव्य कैसे हुए और वह अनादि-अनन्त कैसे हो सकता है?
उत्तर-काल के परमाणु और प्रदेश नहीं होते, अतएव वह काल्पनिक द्रव्य कहा जाता है।
काल की उपयोगिता स्वयं सिद्ध है, क्योंकि उसके बिना कोई भी कार्यक्रम निर्धारित नहीं हो सकता। छोटे से लेकर बड़े कार्य तक में काल की सहायता
अपेक्षित होती है। भूत(हुआ), वर्तमान है) और भविष्यत् (होगा)-इसके बिना किसी का काम चल नहीं सकता। यह उपयोगिता प्रत्यक्ष प्रमाणित है।
काल के परम सूक्ष्म भाग का नाम समय है। ऐसे समय भूत-काल में अनन्त व्यतीत हो गए। वर्तमान में ऐसा एक समय है। आगामी काल में ऐसे अनंत समय होंगे। अतः काल को द्रव्य दृष्टि से अनन्त व्यक्तिक माना गया है काल, जीव और पुद्गल जो अनन्त हैं, उन पर वर्तता है, इसलिए भी वह अनन्त द्रव्य कहा जाता है। काल का अनादिपन तथा अनन्तपन लोक-स्थिति
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