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जीव-अजीव
रहता है। केवली के सिर्फ योग-निरोधात्मक ध्यान ही होता है। मुक्त होने से अन्तर्मुहूर्त पहले मनोयोग का, उसके बाद वचनयोग का, उसके बाद काययोग का और उसके बाद श्वासोच्छवास का निरोध हो जाता है। तब चौदहवां अयोगी गुणस्थान आ जाता है। आत्मा की सब प्रवृत्तियां रुक जाती हैं। यह आत्मा की शैलेशी-मेरु की भांति अडोल अवस्था है। इस अवस्था से आत्मा मुक्त बनती है।
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