________________
अठारहवां बाल
१०६
एवं निर्मलता से बहुत सम्बन्ध है। जिनके राग-द्वेष की भावना प्रबल होती है, उनमें यथार्थ तत्त्व-श्रद्धा नहीं हो सकती। कई व्यक्ति गुरु आदि का उपदेश सुनकर राग-द्वेष का उपशम करते हुए सम्यक्त्व लाभ करते हैं और कई स्वयं राग-द्वेष को उपशांत करते हुए अपनी निर्मलता के कारण सत्य-मार्ग को पकड़ लेते हैं--उनमें सम्यक्त्व का अंकुर फूट पड़ता है। ___सम्यक्त्व एक गुण-प्रधान वस्तु है। वह किसी जाति, समाज एवं व्यक्ति-विशेष के कारण प्राप्त नहीं होता। केवल आत्मशुद्धि से, क्रोध आदि का उचित उपशम होने से ही प्राप्त होता है। इसीलिए सम्यक्त्व की पहचान के लिए पांच गुणात्मक लक्षण बतलाए गए हैं :
१. शम--शांति। २. संवेग-मुमुक्षा। ३. निर्वेद-अनासक्ति। ४. अनुकम्पा--करुणा। ५. आस्तिक्य-सत्यनिष्ठा।
सम्यक्त्व आत्मीय गुण है, वह हमें दिखाई नहीं देता, किन्तु जिस प्रकार धुएं के द्वारा अदृश्य अग्नि का पता चल जाता है, वैसे ही इन पांच लक्षणों से अदृश्य सम्यक्त्व को भी हम पहचान सकते हैं।
सम्यक्त्व के पांच दोष होते हैं। उनका आचरण करने वाले सम्यक्त्व से च्युत हुए बिना नहीं रहते। इसलिए सम्यक्त्वी इन दोषों से बचकर रहे :
१. शंका लक्ष्य के प्रति सन्देह। २. कांक्षा लक्ष्य के विपरीत दृष्टिकोण के प्रति अनुरक्ति। ३. विचिकित्सा-लक्ष्य-पूर्ति के साधनों के प्रति संशयशीलता। ४. परपाषण्ड प्रशंसा लक्ष्य के प्रतिकूल चलने वालों की प्रशंसा । १. परपाषण्ड संस्तक्-लक्ष्य के प्रतिकूल चलने वालों का परिचय।
मिथ्यावादियों की वैसी प्रशंसा और वैसा सम्पर्क, जिससे मिथ्यात्व को प्रोत्साहन मिले।
इन आत्मघाती दोषों से दूर रहनेवाले व्यक्ति को सम्यक्त्वी समझना चाहिए। सम्यक्त्वी के पांच भूषण होते हैं
१. स्थैर्य-तीर्थंकर द्वारा कथित धर्म में स्वयं स्थिर रहना और दूसरों को स्थिर करने का प्रयत्न करना।
२. प्रभावना-धर्म-शासन के बारे में फैली हुई भ्रांत धारणाओं का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org