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अठारहवां बोल
दृष्टि तीन
१. सम्यक्दृष्टि २. मिथ्यादृष्टि
३. सम्यक् मिथ्यादृष्टि
साधारणतया दृष्टि का अर्थ है-चक्षु । परन्तु यहां पर दृष्टि शब्द का प्रयोग तत्व-श्रद्धा (तात्त्विक रुचि) के अर्थ में हुआ है।
सम्यक् अर्थात् पदार्थों के असली स्वरूप को जानने वाले की दृष्टि सम्यकदृष्टि होती है। मिथ्या अर्थात् पदार्थों को मिथ्या माननेवाले की दृष्टि मिथ्यादृष्टि होती है। शेष तत्त्वों में यथार्थ विश्वास रखने वाले तथा किसी एक तत्त्व में सन्देह रखनेवाले की दृष्टि सम्यक्-मिथ्यादृष्टि होती है।
यहां सम्यक्त्वी की दृष्टि को सम्यकदृष्टि, मिथ्यात्वी की दृष्टि को मिथ्यादृष्टि और सम्यक्-मिथ्यात्वी की दृष्टि को सम्यक्-मिथ्यादृष्टि कहा है। तीनों की दृष्टियां निरवद्य एवं विशुद्ध हैं। ये तीनों दृष्टियां मोहनीयकर्म के क्षयोपशम से ही प्राप्त होती हैं।
प्रश्न-मिथ्यात्व और मिथ्यादृष्टि में क्या अन्तर है?
उत्तर-मिथ्यात्व मोहनीयकर्म का उदय भाव है और मिथ्यादृष्टि मोहनीयकर्म का क्षयोपशम भाव है। मिथ्यात्व का अर्थ है-तात्त्विक श्रद्धा की विपरीतता और मिथ्यादृष्टि का अर्थ है-मिथ्यात्वी में पायी जानेवाली दृष्टि की विशुद्धि।
जिसकी दृष्टि सम्यक् होती है उसे सम्यक्दृष्टि, जिसकी दृष्टि मिथ्या होती है उसे मिथ्यादृष्टि और जिसकी दृष्टि सम्यक्-मिथ्या होती है उसे सम्यक-मिथ्यादृष्टि कहा जाता है। परन्तु यहां पहला अर्थ ही ठीक है। यहां गुणी का नहीं किन्तु गुण प्रतिपादन है।
सम्यकदृष्टि एक गुण है। उससे सम्पन्न व्यक्तियों को सम्यक्त्वी कहा जाता है।
सम्यक्त्वी-प्राणी अनंतानुबंधी कषाय से विमुख हो जाते हैं। इनके हृदय में तीव्र क्रोध, मान, माया, लोभ नहीं रहते। सम्यक्त्व का हृदय की सरलता
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