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सतरहवां बोल
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इन छह लेश्याओं में प्रथम तीन अधर्म लेश्याएं हैं और अंतिम तीन धर्म लेश्याएं हैं। उदाहारण के द्वारा उनका तारतम्य समझाया गया है
छह व्यक्ति जामुन के बाग में फल खाने गए। वहां पहुंचते ही पहला व्यक्ति बोला-'देखो अब जामुन का वृक्ष आ गया, इसे काट गिराना ही अच्छा है ताकि नीचे बैठे-बैठे ही अच्छे फल खा सकें। ऐसा सुनकर दूसरे व्यक्ति ने कहा--'इससे क्या लाभ? केवल बड़ी शाखाओं को काटने से ही काम चल जाएगा। तीसरे ने कहा-'यह तो उचित नहीं। छोटी-छोटी शाखाओं से भी तो हमारा काम निकल जाएगा। चौथे ने कहा-'केवल फल के गुच्छों को तोड़ना ही काफी है। पांचवें ने कहा-'हमें गुच्छे से क्या प्रयोजन ? सिर्फ फल ही तोड़कर लेना अच्छा है।' अन्त में छठे मनुष्य ने कहा- ये सब विचार व्यर्थ हैं, हमें जितनी आवश्यकता है उतने फल तो नीचे गिरे हुए हैं ही, फिर व्यर्थ में इतने फल तोड़ने से क्या लाभ ?'
इस दृष्टांत से लेश्याओं का स्पष्ट रूप समझ में आ जाता है। पहले व्यक्ति के परिणाम कृष्णलेश्या के हैं और क्रमशः छठे व्यक्ति के परिणाम शुक्ल लेश्या के हैं। यह दृष्टांत केवल परिणामों की तरतमता दिखाने के लिए है।
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