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________________ पन्द्रहवां बोल के अन्दर थी वही वृद्धावस्था में रहती है। यदि ऐसा नहीं हो तो दस-बीस वर्ष पहले की कोई भी घटना हमें याद ही न रहे। जिस प्रकार वर्तमान शरीर में इतना परिवर्तन होने पर भी आत्मा नहीं बदलती, उसी प्रकार मरने के बाद दूसरा शरीर मिलने पर भी वह नहीं बदलती। वास्तव में शरीरों में परिवर्तन होता रहता है, आत्मा वही रहती है। शरीर - शास्त्र के अनुसार प्रत्येक क्षण में हमारी मृत्यु हो रही है। ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक सातवें वर्ष हमारे शरीर के समस्त पदार्थ सम्पूर्ण रूप से बदल जाते हैं, फिर भी हमारा अस्तित्व बीच में टूटने के बजाय बना रहता है । हम चौदह या इक्कीस वर्ष पहले की घटनावलियों को याद रख सकते हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि शरीर से भिन्न भी कोई ऐसी वस्तु जरूर है, जो हमारे अस्तित्व को सर्वदा कायम रखती है - वह आत्मा ही है । कोई भी मनुष्य यह कभी नहीं सोचता कि एक दिन मैं नहीं रहूंगा अथवा मैं पहले नहीं था, परन्तु मनुष्य हर वक्त यह सोचता है कि मैं सदा से हूं और सदा रहूंगा। मनुष्य की इस स्वाभाविक धारणा को कोई हटा नहीं सकता । प्रश्न -- आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कैसे कर सकता है। उत्तर--सूक्ष्म शरीर -- कार्मण शरीर के द्वारा । प्रश्न- आत्मा हमें दीखता क्यों नहीं? ६५ उत्तर- वह अमूर्त है। प्रश्न- बिना देखे हम आत्मा का अस्तित्व कैसे मान लें ? उत्तर--नहीं दीखने मात्र से किसी वस्तु का अभाव नहीं होता । प्रश्न- आत्मा का रूप नहीं, आकार नहीं, तो फिर वह पदार्थ ही क्या? उत्तर--रूप, आकार, वजन एक पदार्थ विशेष के निजी लक्षण हैं, सब पदार्थों के नहीं। पदार्थ का व्यापक लक्षण अर्थ-क्रिया कारित्त्व है । पदार्थ वही है, जो प्रतिक्षण अपनी क्रिया करता रहे। पदार्थ का दूसरा लक्षण है--सत् । सत् का अर्थ यह है कि पदार्थ पूर्व-पूर्ववर्ती अवस्थाओं को त्यागता हुआ तथा उत्तर- उत्तरवर्ती अवस्थाओं को प्राप्त करता हुआ अपने अस्तित्व को न त्यागे । आत्मा में पदार्थ के दोनों लक्षण घटित हैं। आत्मा का गुण चैतन्य है। उसमें जानने की क्रिया निरन्तर होती रहती है । वह बाल्य, युवा, वृद्धत्व आदि अवस्थाओं तथा पशु, मनुष्य आदि शरीर का अतिक्रमण करती हुई भी चैतन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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