________________
९२
कैसे सोचें ?
दो होते हैं यानी सामान्यतः कोई काम नहीं करना है मुनि को, किंतु पुष्ट आलम्बन हो तो वह काम किया भी जा सकता है। सहारा चाहिए। सहारा भी मामूली नहीं, गली ( बहाना ) निकालने वाला नहीं। आलम्बन भी पुष्ट चाहिए। यह गली ( बहाना ) निकालने की बात तो बहुत कमजोरी की बात होती है
1
तेरापंथ की घटना है । आचार्य ऋषिराय ने जयाचार्य को आदेश दिया कि बीदासर से बीकानेर चले जाओ । भयंकर मौसम, भयंकर गर्मी और रेतीला रास्ता । भयंकर टीले । सड़कें नहीं थीं । सत्तर माइल जाना । आषाढ़ का महीना | कड़ी गर्मी । रास्ते में पानी का नाम नहीं । धूप की समस्या | और उन टीलों में से चलना । पूरा रेगिस्तान । आदेश हो गया । ऋषिराय बैठे थे मेवाड़ में और आदेश हो गया जयाचार्य को, बीदासर से बीकानेर चले जाओ । साधुओं ने सोचा बड़ी समस्या है। श्रावकों ने सोचा बहुत कड़ी बात है। न जाने क्या हो जाए ? सचमुच बात भी ऐसी थी । ऐसी बात थी कि प्राणांत तक की स्थिति हो जाए। ऐसी स्थिति भी रास्ते में आ गई, विहार करने के बाद । जयाचार्य ने स्वयं लिखा है, पहले ही दिन प्राणांत हो जाए, ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा। लोगों ने मिलकर कहा, 'महाराज ! अपना अनुशासन है, आचार्य के आदेश को अस्वीकार तो नहीं किया जा सकता किन्तु आप कोई गली निकाल लें जिससे आदेश का पालन भी हो जाए और विहार भी न करना पड़े।' गली (बहाना) निकाल लें - जयाचार्य ने सुना । तत्काल बोले- 'गली ( बहाना ) निकाले कोई गंवार | क्या मैं नौकर हूं ? गली या तो कोई नौकर निकाले या गंवार निकाले । मैं तो आदेश का पालन करूंगा ।'
गली निकालने वाली बात, मूर्खता की बात होती है। समझदार आदमी कभी गली नहीं निकालता । वह अपने लक्ष्य के साथ चलता है और लक्ष्य की पूर्ति के लिए चलता है । आलम्बन गली निकालने के लिए नहीं होना चाहिए । इसलिए एक शब्द का विशेषण जोड़ा की आलम्बन पुष्ट होना चाहिए । कमजोर आलम्बन नहीं । इतना पुष्ट आलम्बन कि सचमुच ऐसी स्थिति थी, परिस्थितिवश यह काम अनिवार्य हो गया इसलिए यह करना पड़ा। आलम्बन पुष्ट होना चाहिए । कमजोर आलम्बन से इन वृत्तियों को बदला नहीं जा सकता। पुष्ट आलम्बन हो तो प्रतिक्रियाओं से बचा जा सकता है और उनके प्रवाह को मोड़ा जा सकता है ।
पुष्ट आलम्बन अभ्यास के द्वारा बनता है । आलम्बन दोनों हो सकते हैं । एक सिद्धान्त भी आलम्बन बन सकता है। एक प्रयोग भी आलम्बन बन सकता है। दोनों प्रकार के आलम्बन हमारे सामने उपयोगी बनते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org