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________________ प्रतिक्रिया से कैसे बचें ? ( २ ) क्रिया और प्रतिक्रिया - यह स्वाभाविक है । पैर में कांटा चुभा और हाथ तत्काल कांटा निकालने के लिए पहुंच गया। कांटा चुभना क्रिया है, प्रतिक्रिया है तत्काल कांटा निकालना । कांटा चुभा, संवेदी तत्त्वों के द्वारा सूचना पहुंची मस्तिष्क तक । तत्त्वों को निर्देश मिला, मांसपेशियां सक्रिया हुईं और हाथ कांटा निकालने के लिए वहां पहुंच गया । यह है क्रिया और प्रतिक्रिया का सिद्धांत । क्रिया होगी वहां प्रतिक्रिया निश्चित होगी । हम प्रतिक्रिया से बच भी नहीं सकते । किन्तु वे प्रतिक्रियाएं जो हमारे हितों का संरक्षण नहीं करतीं, अहित की ओर ले जाती हैं, हमारे लक्ष्य की पूर्ति में विघ्न और बाधा उपस्थित करती हैं, हमारी आदतों को विकृत बनाती हैं, उनसे बचना हमारे लिए बहुत जरूरी है । यदि प्रतिक्रिया को स्वाभाविक मानकर बैठ जाएं तो बड़ी कठिनाई पैदा हो जाएगी। लोग मान बैठे हैं, बहुत सारे लोग यही तो मानते हैं कि गाली दे तो गुस्सा आना स्वाभाविक बात है । गुस्सा आए वह स्वाभाविक है, न आए तो अच्छा आदमी नहीं समझा जाता। यही समझा जाता है कि यह तो दब्बू है, भीरू है, डरपोक है, कमजोर है । अन्यथा ऐसा प्रसंग आए और चुप रह जाए ? कैसा आदमी हुआ ? उसे अच्छा नहीं समझा जाता । तो हर प्रतिक्रिया को स्वाभाविक मान बैठें। यह भी खतरनाक बात है । हमें विवेक करना होगा कि जो प्रतिक्रियाएं जीवनयात्रा में स्वाभाविक हैं उनके लिए हमें चिन्तन करने की आवश्यकता नहीं, बदलने की आवश्यकता नहीं, किन्तु वे प्रतिक्रियाएं जो स्वाभाविक नहीं हैं, केवल मान्यतावश, धारणावश या मूर्च्छावश फलित हो रही हैं, उनसे बचना हमारे लिए आवश्यक है । कैसे बचें ? बड़ा टेढ़ा प्रश्न है । क्योंकि वे आदतें बन गई हैं और मस्तिष्क में ऐसी संरचना हो गई है कि अमुक स्थिति होने पर, अमुक स्थिति अनायास हो जाती है । न चाहने पर भी हो जाती है। मैंने एक प्रश्न उपस्थित किया था कि प्रकाश के लिए उतना प्रयत्न होता है, अंधकार के लिए कोई प्रयत्न नहीं होता, पर प्रकाश तो चला जाता है और अंधकार स्वाभाविक जैसा बन जाता है। क्षमा के लिए इतना प्रयत्न ता है किन्तु समय आने पर क्षमा की बात विस्मृत हो जाती है और क्रोध सहज ही उभर आता है । यह स्थितियां स्वतः उभरती हैं। इनसे कैसे बचा जाए ? इनसे बचने के लिए पुष्ट आलम्बन की आवश्यकता है । जैन आचार्यों ने एक शब्द का चुनाव किया-पुष्ट आलम्बन । आलम्बन और 'पुष्ट आलम्बनन-ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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