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________________ प्रतिक्रिया से कैसे बचें ? (२) प्राचीन आचार्यों ने मुनि चर्या के प्रसंग में कुछ आलम्बनों की सूचनाएं दी हैं। उन्होंने कहा - अमुक स्थिति आ जाए तो अमुक आलम्बन का सहारा लो । एक स्थिति आई । आहार नहीं मिल रहा है, उपयुक्त आहार नहीं मिल रहा है। भूख को कैसे सहा जाए। इसका आलम्बन सूत्र है- 'धम्मोत्ति किच्चा' भूख को सहना मेरा धर्म है । सामने यह आलम्बन रखे, 'यह मेरा धर्म है । ' अभक्ष्य नहीं खाना मेरा धर्म है । अभक्ष्य मिले और उपयुक्त एषणीय आहार न मिले तो भूखे रहना मेरा धर्म है । इस धर्म के आलम्बन के सहारे उस कठिनाई को पार किया जा सकता है। यह एक बहुत बड़ा आलम्बन बनता है । किसी ने कठोर बात कही, कड़वे शब्द कहे, रूखे कहे, गालियां दीं । स्वाभाविक है क्रोध आना, स्वाभाविक है उत्तेजना और आवेश में आ जाना, किंतु जब पुष्ट आलम्बन होता है तो आदमी बच सकता है। एक बहुत महत्त्वपूर्ण आलम्बन था कि कोई कुछ कहे, सीख दे, कड़ी बात कहे, कठोर बचन कहे, उस समय तत्त्व की गवेषणा करे, खोज करे 'आक्रुष्टेन मतिमता, तत्त्वान्वेषणे मतिः कार्या । यदि सत्यं कः कोप: यद्यसत्यं किन्नु कोपेन ? ।।' 'यदि सचमुच मैंने ऐसा किया है और यह जो कह रहा है क्या इसमें कोई सचाई है ? यदि सचाई है तो फिर क्रोध क्यों करना चाहिए? यह सोचना चाहिए, यह सही कह रहा है । मैंने यह प्रमाद किया । मुझसे यह गलती हुई है, भूल हुई है, यह बेचारा बिलकुल ठीक कह रहा है । मुझे सचाई को स्वीकार करना है, ऋजुभाव से स्वीकार करना है। उसे कहना है कि तुम जो कह रहे हो वह बिलकुल ठीक है । मुझसे ऐसा हो गया। यदि वह बात सत्य नहीं है, केवल भ्रमवश, संदेहवश या कल्पनावश ऐसी बात कह रहा है तो फिर यह सोचो कि वह जो कह रहा है वह मुझ पर लागू ही नहीं होती तो फिर मैं क्यों क्रोध करूं ? यह बात मुझ पर आ ही नहीं रही है, किसी पड़ोसी पर जाती है तो मैं लड़ाई को अपने सिर पर क्यों मोल लूं ?' बहुत सारी बातें होती हैं, बहुत बकवास होती है, बहुत गालियां चलती हैं, एक यह भी है, हो रही है, मुझ पर कोई असर नहीं, मेरा इससे कोई संबंध नहीं है, फिर मुझे क्यों आवेश में आना चाहिए। यह बहुत पुष्ट आलम्बन दिया है- दोनों ओर से कि जो सच है तो क्रोध करना व्यर्थ है, क्रोध मत करो। यदि झूठी बात है तो तुम पर लागू ही नहीं होती तो तुम सोचो मुझे कह ही नहीं रहा है, किसी पड़ोसी से कह रहा है। मेरे लिए कुछ है ही नहीं । मेरा इससे कोई सम्बन्ध है ही नही । तुम Jain Education International ९३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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