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________________ प्रतिक्रिया से कैसे बचें ? (१) हर बात-बात में कह रहा है कि गलती-गलती। ऐसा लगता है मानो गलती बताना इसका एक मंत्र बन गया है। यह एक प्रतिक्रिया का प्रसंग है। इस प्रकार की प्रतिक्रिया जागती है। मैंने अनुभव किया है कि अहिंसा का विकास हुए बिना इस प्रतिक्रिया से आदमी बच नहीं सकता। आचार्य भिक्षु का जीवन मैं अहिंसा का जीवन मानता हूं। दो व्यक्ति हिन्दुस्तान में इन दो शताब्दियों में मेरे सामने आते हैं-आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी। दोनों के जीवन में कुछ बातों में बड़ी समानता है। आचार्य भिक्षु ने अहिंसा का बड़ा प्रयोग किया। महात्मा गांधी ने भी किया। प्रतिक्रिया मुक्ति कैसे हो सकती है, इसका जीवन्त उदारहण है-आचार्य भिक्षु। __ एक भाई आकर बोला, महाराज ! अमुक व्यक्ति आप में यह-यह दोष निकाल रहा है। वह कहता है, भिक्षु में यह दोष है, यह अवगुण है। अनेक दोष निकाल रहा है। आचार्य भिक्षु प्रसन्न मुद्रा में बोले, क्या बुरा हुआ ? साधु इसीलिए बना हूं कि दोषों को बाहर फेकू। मैं साधना कर रहा हूं, तपस्या कर रहा हूं, कुछ दोष मैं बाहर निकाल रहा हूं। वह भाई मेरा बड़ा सहयोगी है, कुछ दोष मेरे वह निकाल रहा है, मेरा सहयोग कर रहा है, तुम बुरा क्यों मानते हो ? बात समाप्त हो गई। ___ यह है हमारा क्रिया का जीवन । आचार्य भिक्षु में प्रतिक्रिया या हिंसा की कोई भावना नहीं जागी। अन्यथा किसी को यह कहकर देखो कि अमुक व्यक्ति तुम्हारे में वह दोष निकाल रहा है, यह दोष निकाल रहा है। किसी राजनीति के व्यक्ति को कह दो, दूसरा तुम्हें बुरा बता रहा है, दोषी बता रहा है, उसमें भयंकर प्रतिक्रिया जाग उठेगी। प्रतिशोध की भावना भी प्रबल हो जाएगी। कोई चुनाव लड़ रहा था। किसी ने यह कह दिया कि अमुक व्यक्ति तुम्हें गालियां दे रहा है। उसने कहा-कोई बात नहीं, चुनाव लड़ लूं, मंत्री बन जाऊं फिर देखता हूं गालियां देने का क्या अर्थ होता है। हर आदमी की यह प्रतिक्रिया होती है कि कोई गाली दे और गाली को सहन कर ले तो आदमी बना ही क्या ? कोरी मिट्टी है। एक तो गाली दे रहा है और उसे सहन कर ले, जो दोष बता रहा है उसे सहन कर ले, क्या आदमी बना ? बहुत कम लोग होते हैं जो इस प्रकार के प्रसंग उपस्थित होने पर अपना संतुलन बनाए रख सकें और बुराई को अच्छाई में बदल सकें। आचार्य भिक्षु की ही एक दूसरी घटना प्रस्तुत करना चाहता हूं। पाली में चातुर्मास करना था। वहां गए। रहने के लिए स्थान की खोज करने लगे। बाजार में देखा कि एक दुकान है। पुरानी-सी दुकान। आचार्य भिक्षु ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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