________________
कैसे सोचें ?
I
मालिक से स्वीकृति मांगी कि 'हमें चातुर्मास में रहने के लिए तुम्हारी दुकान चाहिए।' उसने स्वीकृति दे दी । वे ठहर गए। दूसरे लोगों को पता चला । दुनिया में सब प्रकार के लोग होते हैं । आचार्य भिक्षु का विरोध करने वाले तो उस समय बहुत बड़ी संख्या में थे । पता चला कि भिक्षु को रहने के लिए स्थान मिल गया । कुछ लोग उस दुकान के मालिक के पास गए और बोले, किसको स्थान दिया है ? निकाल दो। भला नहीं होगा। उसे बहुत भड़काया । वह भ्रम में आ गया। उसने भिक्षु से आकर कहा - 'आप यहां पर नहीं रह सकते ।' उन्होंने कहा, ठीक बात है । अगर मालिक अस्वीकृति कर दे तो ठहरने का प्रश्न ही नहीं होता । आचार्य भिक्षु ने तत्काल वहां से प्रस्थान कर दिया । वे किसी दूसरे स्थान पर चले गए, वहां ठहर गए। चौमासे का समय, वर्षा ऋतु का समय, अच्छी वर्षा हुई। कोई ऐसा योग मिला कि तूफान के साथ गहरी वर्षा के कारण दुकान ढह गई । आचार्य भिक्षु को पता चला कि दुकान तो ढह गई है। आचार्य भिक्षु ने कहा- देखो ! कितने उपकारी थे वे लोग ! उन्होंने कितना बड़ा उपकार किया ! अगर वे उपकार न करते तो पता नहीं हम दुकान में होते, दुकान ढहती, हमारा क्या होता ? उन्होंने हमारे प्राणों को बचा लिया । वे कितने बड़े उपकारी हैं ?
८४
क्या ये प्रतिक्रिया के स्वर हो सकते हैं ? जिस व्यक्ति में हिंसा की थोड़ी भावना है, जिस व्यक्ति में प्रतिक्रिया की थोड़ी भावना है वह व्यक्ति इस प्रकार सोचेगा कि उन्होंने हमें निकाल दिया । हम इस तिरस्कार का बदला लेंगे, प्रतिशोध लेकर रहेंगे। यदि कोई बदला न ले सके तो बुरा-भला तो कह ही देता है । प्रतिक्रिया पैदा करती है-हिंसा, तनाव, असंतुलन, रक्त-संचार में अवरोध और कभी-कभी वह अवरोध उस बिन्दु पर भी पहुंच जाता है जहां हेमरेज की स्थिति भी आ जाती है । ब्रेन हेमरेज जो होता है उसके पीछे तनाव होता है और तनाव के पीछे हिंसा होती है, प्रतिक्रिया का भाव होता है, प्रतिशोध की आग होती है ।
अहिंसा का सिद्धांत केवल धर्म का ही सिद्धांत नहीं है । वह अच्छा जीवन जीने का सिद्धांत है, स्वस्थ जीवन जीने का सिद्धांत है । हम बीमारियों के बारे में बहुत सोचते हैं । औषधियां बढ़ रही हैं और रोग भी बढ़ रहे हैं । अनुसंधान होना चाहिए, बीमारियां क्यों बढ़ रही हैं ? बीमारियां केवल कीटाणुओं के कारण ही नहीं बढ़ रही हैं, वे हमारी मानसिक हिंसा के कारण भी बढ़ रही हैं ।
हमने देखा है कि प्रेक्षा ध्यान शिविर में अभ्यास करने वाले लोग दवाइयों की आदत से मुक्त हो जाते हैं। उनकी भयंकर बीमारियां मिट जाती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org