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________________ ८२ कैसे सोचें ? तो अहंकार को कम करना जरूरी है ही, किन्तु संन्यासी तो नहीं बना पर सामाजिक जीवन जी रहा है, उसके लिए भी आवश्यक है कि अहंकार को कम करता चले। कम करता चले। ___महारानी विक्टोरिया गई। दरवाजा खटखटाया। भीतर था प्रिंस अलबर्ट । उसने पूछा, कौन है ? उसने कहा-महारानी विक्टोरिया । दरवाजा खुला नहीं। फिर खटखटाया और फिर पूछा कौन है ? उसने फिर कहा-'आपकी प्रिय पत्नी विक्टोरिया।' तत्काल दरवाजा खुल गया। महारानी के लिए दरवाजा नहीं खुल सकता और प्रिय के लिए दरवाजा खुल सकता है। जब अहंकार बैठा है तो सामने वाला व्यक्ति भी तन जाता है। एक का अहंकार दूसरे में भी अहंकार पैदा कर देता है। एक की विनम्रता दूसरे को भी विनम्र बना देती है। प्रतिक्रिया का बहुत बड़ा कारण बनता है-अहंकार एक पक्ष का अहंकार भी प्रतिक्रिया का कारण बनता है। और यदि अहंकार दोनों पक्षों में हो जाए तो फिर भयानक स्थिति बन जाती है। प्रतिक्रिया का दूसरा हेतु बनता है-गलती बताना। कोई आदमी किसी को बताए कि यह तुमने गलती की, यह तो बड़ी भंयकर बात है। न बताए तब तक तो ठीक है, बताने पर सौ में निन्नानवें व्यक्ति ऐसे होंगे कि एकदम आवेग में आ जाएंगे। बड़ी कठिन समस्या है, दूसरे की गलती बताना। दूसरे के दोष बताने का मतलब है कि शत्रुता मोल लेना। यह विचार गृहस्थों में ही नहीं, साधना करने वाले व्यक्तियों के मन में भी है। मैं कोई किसी की गलती बताऊं, इसका मतलब शत्रुता मोल ले लूं ? क्योंकि गलती बताने पर उसे सम्यक् स्वीकार करे और यह कहे कि तुमने बहुत अच्छा काम किया, मुझे जताया, मुझे सावधान किया, बहुत अच्छा है, मैं और सावधान रहूंगा-यह बात तो सुनने को मिलती नहीं और गलती बताते ही बताने वाले पर बरस पड़ता है कि कल का छोकरा और मुझे गलती बता रहा है ? तुझे पता है, तूने जितना आटा खाया है उतना मैं नमक खा चुका हूं। मेरी क्या गलती बताएगा ? मुझे क्या चेताएगा ? इतनी भयंकर प्रतिक्रिया जागती है कि वह प्रतिक्रिया प्रतिशोध में बदल जाती है। प्रतिशोध भी भयंकर होता है। मैंने देखा है, अनुभव किया है, एक व्यक्ति ने किसी को बता दिया कि यह तुम गलती कर रहे हो। उसने गांठ बांध ली। अब वह प्रतिवाद में दिन में पचास बार कहता, यह तुम गलती कर रहे हो। उसने सोचा, किस भूत से वास्ता हो गया, पिंड छुड़ाना मुश्किल है। मैंने तो सहज भाव से बताई कि भाई ! यह तुम्हारी गलती है। इसके मन में तो प्रतिशोध की भावना जाग गई। अब यह मेरे पीछे पड़ गया है ? उठू तो गलती कर रहे हो, बैतूं तो गलती कर रहे हो, चलूं तो गलती कर रहे हो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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