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________________ दूसरे के बारे में अपना दृष्टिकोण एक व्यक्ति गुरु के पास आया और बोला-'गुरुदेव ! दुःख से छूटने का उपाय बताओ।' बड़ा प्रश्न था । थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न कि दु:खों की दुनिया में जीना और दुःख से छूटने का उपाय करना। छोटी बात नहीं थी, बहुत बड़ी बात थी। गुरु ने कहा, एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी हो उसका अंग-रखा ले आओ, फिर दु:ख से छूटने का गुर बताऊंगा। वह गया, एक घर में जाकर पूछा-'भाई ! तुम तो सबसे सुखी हो।' । कोई न पूछे, तब तक सब ठीक है। तरंग न उठे तब तक समुद्र शांत है। तूफान न आए तब तक जल शांत है, बवंडर न उठे तब तक सब ठीक है। किन्तु जब तूफान आता है, बवंडर आता है तब तरंग ही तरंग हो जाता है। मूल स्वभाव का पता ही नहीं चलता। प्रश्न न हो तब तक ठीक है, पर जब प्रश्न पूछा जाता है, ठीक बेठीक हो जाता है। उसने कहा-सूखी ! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है, आए दिन मुझे सताता रहता है। भला, मैं कैसे सुखी हो सकता हूं, मैं तो अत्यन्त दु:खी हूं। वह दूसरे घर गया और बोला-भई ! तुम तो बिलकुल सुखी हो ? कोई दु:ख तो नहीं ? घर का स्वामी बोला-'क्या बात पूछते हो ? सुख की बात ! ऐसी कर्कशा पत्नी मिली है कि दिन भर सिर खाती रहती है। मेरे जीवन में तो सुख की कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती।' तीसरे के पास गया, चौथे के पास गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बतलाती है। पति के पास गया तो वह पत्नी को क्रूर बतलाता है। पिता के पास गया तो वह पुत्र को उद्दण्ड बतलाता है। सैकड़ों-सैकड़ों घरों में घूमा, परिक्रमा करता चला गया, हजारों घरों के आस-पास चक्कर लगाता गया, सब अपने आपको दु:खी बतलाते हैं, कोई सुखी नहीं बतलाता। बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कब तक घूमूंगा। गुरु के पास आकर बोला-'मैं तो घूमते-घूमते थक गया। आपने कहा था, सबसे सुखी हो उस व्यक्ति का अंगरखा लाना। सबसे सुखी की बात दूर, मुझे तो कोई सुखी ही नहीं मिला। किसका अंगरखा लाता !' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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