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________________ अपने बारे में अपना दृष्टिकोण (२) ६३ 1 रखना। मुझे बिना पूछे कोई काम मत करना।' अनुशासन की बात तो बता दी। उसने स्वीकार कर लिया कि बिलकुल ठीक बात है । दूसरे ही दिन एक घटना घटी। मालिक के पास आया और बोला- 'मालिक! बिल्ली दूध पी रही है, क्या करूं ?' 'अरे ! मूर्ख ! पूछने आया है ? हटा देना था ।' उसने कहा-आपने ही कहा था कि मुझे पूछे बिना कुछ भी नहीं करना है । यह डाला हुआ पानी होता है । जितना कह दिया, उतना मान लिया । अनुशासन विवेक के साथ जुड़ा हुआ होता है । किन्तु जबरदस्ती थोपा हुआ, आरोपित नहीं होता । अनुशासन ऐसे ही ही नहीं आता। अनुशासन परस्परावलंबन की अनुभूति के द्वारा आता है प्रश्न था स्वतंत्रता का । वैयक्तिकता के साथ जुड़ी हुई है - स्वतंत्रता और सामाजिकता के साथ जुड़ी हुई है - परतंत्रता । दोनों शब्द हमारे बहुत प्रिय शब्द हैं, स्वतंत्रता भी और परतंत्रता भी । स्वतंत्र होना भी कोई बुरी बात नहीं है, परतंत्र होना भी कोई बुरी बात नहीं है । हमने स्वतंत्रता को ज्यादा अभिव्यक्ति दे दी और परतंत्रता को विपरीत अर्थ में ज्यादा अभिव्यक्ति दे दी। इन दोनों को सापेक्षता के आधार पर समझना है। जहां हम निरपेक्ष बात करेंगे, वहां सारी बात गलत हो जाएगी। उदाहरण के लिए सफेद रंग अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है । काला रंग खराब कहां होता है, बहुत अच्छा होता है । जैसे ही सर्दी का मौसम आता है, हर आदमी काला बन जाता है। वह इस बात को जानता है कि काले रंग में अवशोषण की क्षमता है कि बाहर से जो भी आता है वह उसे रोक देता है, भीतर नहीं जाने देता। यह काले रंग की विशेषता है । न्यायालय में देखें, न्यायाधीश काले कपड़े पहनकर जाते हैं । काले रंग में क्षमता है कि दूसरे के प्रभाव से बचा सकते हैं। ये रंग भी, हमारी भावना के, आचार और व्यवहार के प्रतीक होते हैं। रंगों का चुनाव ऐसे ही नहीं होता, बड़ी गहराई के साथ रंगों का चुनाव होता है। जजों और वकीलों के काली पोशाक का जो चुनाव किया गया, बहुत अर्थवान् है कि एक न्यायाधीश को प्रभावित नहीं होना चाहिए । न्यायालय का वातावरण प्रभावमुक्त होना चाहिए । इसलिए काले रंग का चुनाव किया गया। अगर न्यायाधीश लाल रंग के कपड़े पहनकर बैठता तो दूसरों की बात कम सुनता और उत्तेजित होकर अपनी ही बात सुनानी ज्यादा पसन्द करता । इतना उत्तेजित हो जाता कि फिर बेचारे वकील तो खड़े ही रहते। उनकी कोई नहीं सुनता फिर । लाल का चुनाव नहीं किया जा सकता, पीले का चुनाव नहीं किया जा सकता । कहावत है कि लाल-पीला हो गया। कोई नहीं कहता कि गुस्से में आ गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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