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________________ ६४ कैसे सोचें ? यही कहता है कि वह लाल-पीला हो गया। लाल और पीला-दोनों गरम रंग हैं। रंग दो प्रकार के होते हैं-ठंडा और गरम । नीला रंग ठंडा होता है। लाल रंग और पीला रंग गरम होते हैं। न्याय करने बैठे और गरम रंग का कपड़ा पहने, गरम तो पहले ही हो जाएगा, न्याय कैसे कर पाएगा ? काले रंग का चुनाव किया गया। यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण चुनाव है। इस प्रकार हमने परतंत्र होने को सर्वथा बुरा मान लिया और स्वतंत्र होने को सर्वथा अच्छा मान लिया। यह न भूलें कि अनेकांतदृष्टि से किया गया कोई निर्णय सही नहीं होता। हम अनेकांतदृष्टि को छोड़कर सचाई तक नहीं पहुंच सकते। अनेकांत का निर्णय यह है कि स्वतंत्रता अच्छी भी है और बुरी भी है। परतंत्रता अच्छी भी है और बुरी भी है। . हमने सुना था कि जब हिन्दुस्तान आजाद हुआ तब लोगों ने स्वतंत्रता के बड़े विचित्र अर्थ किए। इन्कमटेक्स ऑफीसर इन्कमटेक्स लेने की बात करता है तो व्यापारी कहता है कि मैं टैक्स नहीं दूंगा, क्योंकि अब हमारा देश स्वतंत्र हो गया है। अब हम किसलिए टैक्स चुकाएं? किसान से वसूली करनी है, वह कहता है कि मैं भी नहीं दूंगा-क्योंकि आजाद हो गया हूं, अब किसलिए दूं ? एक आदमी ने फिर व्यंग्य कसा कि फिर तो यह बात हो गई कि एक आदमी सड़क पर जाकर बैठ गया। उधर से ट्रक आया। उसने कहा कि भई, रास्ता रोक कर सड़क के बीच क्यों बैठे हो ? उसने कहा, मेरा देश आजाद है, मैं आजाद हूं, मन चाहे वैसा करूं। ड्राइवर ने कहा, अच्छी बात है, मैं भी ट्रक चलाने के लिए आजाद हूं। स्वतंत्रता भी कोई अच्छी ही नहीं होती। इसके भी कई अर्थ हो जाते हैं। परतंत्रता भी कोई बुरी नहीं होती। एक बच्चा यदि परतंत्र नहीं होता, माता-पिता के कहे में नहीं चलता है तो वह बिगड़ जाता है। एक अल्पमति वाला व्यक्ति, जिसका बौद्धिक विकास कम है, जिसमें सोचने-समझने की क्षमता कम है, वह व्यक्ति यदि अपने ही तंत्र के आधार पर चलता है और किसी दूसरे के तंत्र को स्वीकार नहीं करता, वह भी गलत रास्ते पर चला जाता है। दूसरे का तंत्र भी बहुत आवश्यक होता है। अनुशासन दूसरे के तंत्र से जुड़ा हुआ है। कभी स्वीकार मत करो कि मेरा ही तंत्र चले। एक सीमा एक तक तुम्हारा तंत्र चले, दूसरी सीमा तक दूसरे का भी तंत्र चले। जहां आवश्यक हो वहां तुम्हारा तंत्र और जहां आवश्यक हो वहां दूसरे का तंत्र। विद्यार्थी अध्यापक के तंत्र को मानकर चलता है। शिष्य गुरु के तंत्र को मानकर चलता है। शिष्य के मन में भावना जाग जाए कि मैं गुरु बन जाऊं। हो सकती है भावना, पर इसे लेकर गुरु के आसन पर बैठ जाएगा तो अर्थ क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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