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कैसे सोचें ?
लिए हुए चल रहा है। पेट में रोटी है इसलिए चल रहा है, अकेला कहां चल रहा है । पत्नी रोटी न परोसे तो पति को पता चल जाता है कि कैसे चला जाता है, पैर ठंडे पड़ जाते हैं। घुटने टिक जाते हैं । चलने की शक्ति नष्ट हो जाती है। एक आदमी चल रहा है तो उसके साथ-साथ रोटी भी चल रही है । रोटी चल रही है तो साथ-साथ में व्यापारी भी चल रहा है । साथ-साथ में किसान भी चल रहा है । साथ-साथ में औजार बनाने वाला शिल्पी भी चल रहा है। एक आदमी के साथ अनेक परछाइयां चल रही हैं, तब वह आदमी चल रहा है। केवल अकेला चलेगा तो वह चलेगा नहीं, स्थिर ही होगा। वह गतिमान नहीं हो सकता। हमारी गति के साथ न जाने कितने लोगों का योग है, कितने जुड़े हुए हैं । हम जब योग की बात को भुला देते हैं, इस जुड़े हुए की बात भुला देते हैं तब अकेलेपन की बात सोचते हैं, व्यक्तिगत बात सोचते हैं । किन्तु जैसे ही हम दूसरे कोण की ओर मुड़ते हैं और ध्यान देते हैं कि योग के बिना, इस जुड़ाव के बिना कोई भी आदमी कुछ भी नहीं कर सकता तो समाज की प्रतिमा हमारे सामने उपस्थित हो जाती है । और एक प्रयत्न के साथ सैकड़ों प्रयत्न स्पष्ट उभर आते हैं। अकेला आदमी कोई भी कुछ नहीं कर सकता। सबका योग मिलता है तब पूरा काम बनता है ।
यह योग या संबंध इतना सूक्ष्म है कि पता ही नहीं चलता । स्थूल दर्शन में कोई पता नहीं चलता किन्तु सूक्ष्म दर्शन में हर चरण पर उस संबंध का आभास होता है। एक आदमी दूसरे के घर जा रहा है। वह गति कर रहा है, चल रहा है क्योंकि संबंध जुड़ा हुआ है । वह उससे जुड़ा हुआ है, इसलिए जा रहा है । अपने मित्र के घर जाता है, अपने संबंधी के घर जाता है तो जिसके साथ जिसका सम्बन्ध जुड़ा हुआ है वह उसके पास जाता है। संबंध की प्रेरणा उसे वहां ले जाती है। उपयोगिता है वहां आदमी चला जाता है ।
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योग, उपयोग और प्रभाव - इन तीन सूत्रों के आधार पर परस्परावलंबन की बात समझ में आती है। कोई भी व्यक्ति परस्परावलंबन के बिना अपनी जीवन-यात्रा को नहीं चला सकता और इस दुनिया में अपने अस्तित्व को कायम भी नहीं रख सकता । सब कुछ एक दूसरे पर टिका हुआ है। दूसरी मंजिल पहली मंजिल पर टिकी हुई है और पहली मंजिल नींव पर टिकी हुई है । नींव भूमि पर टिकी हुई है। यदि भूमि नहीं तो नींव नहीं टिकेगी । अधर
में कुछ भी नहीं है । सब आधार पर टिका हुआ है। जो अधर में है वह सूक्ष्म जगत् है, हमारे व्यवहार का जगत् नहीं है । व्यवहार का पूरा का पूरा जगत् आधार पर टिका हुआ है। इसलिए हर बात में आधार खोजा जाता है । समाज एक आधार पर चल रहा है। जहां परस्परावलम्बन की विस्मृति
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