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________________ अपने बारे में अपना दृष्टिकोण (२) व्यक्ति अकेला होता यदि उपयोगिता नहीं होती। उपयोगिता ने व्यक्ति को बांधा और समाज बन गया। व्यक्ति अकेला होता यदि अपेक्षा नहीं होती। व्यक्ति अकेला होता यदि योग नहीं होता। व्यक्ति जुड़ता है। उसमें योग की क्षमता है, जुड़ने की क्षमता है, संबंध की क्षमता है। इस संबंध की क्षमता से व्यक्ति ने समाज का निर्माण किया। योग और उपयोगिता-ये दो परस्परावलंबन के आधार बन गए। तीसरा आधार बना प्रभाव । यदि एक दूसरे पर, एक दूसरे का प्रभाव नहीं पड़ता तो समाज नहीं बनता। उपयोगिता, प्रभाव और योग-ये तीन आधार हैं समाज की संरचना के। व्यक्ति अकेला नहीं रहा, समाज बन गया। उपयोगिता बहुत है, क्योंकि अपेक्षाएं बहुत हैं। खाने को चाहिए, पीने को चाहिए, रहने को मकान चाहिए, कपड़ा चाहिए और भी न जाने क्या-क्या नहीं चाहिए। बहुत सारी अपेक्षाएं हैं। अकेला व्यक्ति कभी इन सारी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकता। उपयोगिता और अपेक्षाएं जुड़ी हुई हैं। स्वावलम्बन की चर्चा मैंने की थी। वैयक्तिकता का एक लक्षण है-स्वावलंबन, किन्तु सही अर्थ में, थोड़े गहरे में उतरकर देखा जाए तो स्वावलंबी-यह शब्द भी सापेक्ष ही है। एक अपेक्षा से ही आदमी स्वालंबी होता है। वहां सूत्र बनता है-परस्परावलंबन। इसका अर्थ है-एक दूसरे को एक दूसरे का आलंबन। एक दूसरे को एक दूसरे का सहारा। परस्परावलंबन के आधार पर समाज का निर्माण होता है। एक आदमी खेती करता है, दूसरा व्यापार, तीसरा औजार का निर्माण करता है। चौथा खेती के साधनों का निर्माण करता है। इन सबका योग होता है और अनाज बाजार में आ जाता है। किसान है खेती करने वाला पर यदि औजार नहीं है, ट्रेक्टर नहीं है तो कहां से खेती होगी ? हो नहीं सकेगी। किसान को औजार चाहिए, उपकरण चाहिए। उपकरण कहां से आएगा ? एक शिल्पी हल भी बना लेता है, ट्रेक्टर भी बना लेता है। यदि लोहा नहीं है, काठ नहीं है तो कहां से होगा निर्माण ! ये भी चाहिए, खदान भी चाहिए और मजदूर भी चाहिए जिससे कि खदान से लोहा निकाले और सप्लाई करे। इतना सब कुछ जुड़ा हुआ है। परस्परावलंबन में इतना सब कुछ योग है। सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक व्यक्ति अलग-सा लगता है, चलता है तो ऐसा लगता है, पर वह अकेला नहीं चल रहा है। उसके साथ सैकड़ों-सैकड़ों व्यक्ति चल रहे हैं। सैंकड़ों व्यक्तियों की परछाई Jain Education International national For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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