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________________ अपने बारे में अपना दृष्टिकोण (१) यानी शक्ति का उपयोग करना है पुरुषार्थ और अपनी शक्ति पर भरोसा करना है स्वावलम्बन | पहले स्वावलम्बन होता है । स्वावलम्बन होता है तो पुरुषार्थ होता है। अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं है तो फिर स्वावलम्बन की बात नहीं आती । जिसे अपने पैरों पर भरोसा नहीं है, उसे लाठी लेनी पड़ती है या फिर बैशाखी के सहारे चलना पड़ता है। अपनी शक्ति पर भरोसा होना पहली बात है । यह स्वावलम्बन का दृष्टिकोण है और अपनी शक्ति का उपयोग करना, काम में लाना हमारा पुरुषार्थ है । शिविर का आकर्षण है आध्यात्मिक साधना । मन में यह दूसरा आकर्षण है कि यहां आने पर शरीर भी ठीक होता है । यह सबसे बड़ा आकर्षण है । होना तो चाहिए आध्यात्मिकता का आकर्षण । पर अमूर्त बात तक पहुंचने के लिए आदमी को बहुत समय लगता है । मूर्त बात को पकड़ने में कोई कठिनाई नहीं होती। वह तत्काल पकड़ में आ जाती है, समझ में आ जाती है । बहुत जल्दी आदमी सुनता है कि अमुक गया, ध्यान किया और उसकी बीमारी ठीक को गई। यह ठीक हो गया, वह ठीक हो गया । एक कान से दूसरे कान तक बात पहुंचती है, आकर्षण हो जाता है। अभी एक भाई से मैंने पूछा, 'महाराष्ट्र से आए हो ? कितनी दूर से आए हो !' उसने कहा, 'कुछ गड़बड़ है शरीर में। स्वस्थ नहीं हूं। मैंने सब जांच करवा ली। फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा तो यहां आया हूं। यहां अपने आपको ठीक अनुभव कर रहा हूं।' । स्वास्थ्य की प्रेरणा भी अस्वाभाविक नहीं लगती। शरीर भी ठीक नहीं है तो बेचारा और आगे क्या करेगा ? जब चाकू ही ठीक नहीं है तो बेचारी स्त्री सब्जी कैसे काटेगी ? साधन तो चाहिए, कोई न कोई उपाय और उपकरण तो हमारे पास चाहिए । हमारा शरीर एक उपकरण है । यह धार है चाकू की जो सब कुछ ठीक-ठाक कर देती है । शिविर में शरीर स्वस्थ क्यों होता है ? शिविर में आने वालों की गोलियां क्यों छूट जाती हैं ? यहां घंटा भर तक आसन और प्राणायाम करना होता है। जहां कहीं रक्त का अवरोध होता है, सारे रक्त की प्रणालियां स्वस्थ हो जाती हैं, सब ठीक-ठाक हो जाता है । आपने देखा होगा कि सड़क पर इधर से भी गाड़ियां आती हैं, उधर से भी आती हैं, दाएं-बाएं गाड़ियां क्रास करती हैं। पुलिस का आदमी खड़ा है। हाथ से दाएं-बाएं करता है। एक ओर अवरोध एक मिनट का हुआ तो कभी-कभी तो सैकड़ों गाड़ियों की कतारें लग जाती हैं । हमारे शरीर में न जाने वर्षों तक Jain Education International ५५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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