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________________ ५४ कैसे सोचें ? चाहेंगे । चाह रहे हैं कि ऐसी मशीन का निर्माण हो जो कोई रसोई ही न पकाए, मुंह में कौर भी दे। फिर ऐसी मशीन की खोज भी करनी होगी जो पचा भी दे । पचाने की भी फिर क्या जरूरत है ? इतनी सुविधावादी मनोवृत्ति बन जाती है कि आदमी हर बात के लिए दूसरों का मुंह ताकता रहता है। इससे एक बहुत बड़ा अनर्थ हुआ है कि आदमी श्रम करना भूल गया । हमारे शरीर का स्वभाव है श्रम - 1 - पुरुषार्थ । यह व्यक्तिगत जीवन की तीसरी फलश्रुति है । जिसे अपने पुरुषार्थ पर विश्वास नहीं होता, वह आदमी सब कुछ होने पर भी कुछ भी उपलब्ध नहीं कर पाता। परन्तु बहुत लोग इस ओर ध्यान नहीं देते, क्योंकि बड़ा आदमी तो यह समझता है कि काम करना छुटपन की बात है । अपने हाथ से काम करना छुटपन की बात है और दूसरों के देखते काम करना तो और भी छुटपन की बात है । हम इस सचाई को समझें कि शरीर को श्रम आवश्यक है, जरूरी है । 1 मेरे मन में बहुत बार प्रश्न होता था कि मजदूरों को कितना श्रम करना पड़ता है ? मुनियों को कितना श्रम करना पड़ता है ? वे गोचरी के लिए जाते हैं, पानी लाते हैं, धूप में जाते हैं, वजन उठाते हैं, कितना काम करना पड़ता है ? चिन्तन आता था, किन्तु जैसे-जैसे इस सिद्धांत को समझा, मुझे यह सचाई समझ में आ गई कि शरीर के जिस अवयव को श्रम नहीं मिलता, वह अवयव बेकार, निकम्मा और रुग्ण बन जाता है । आरोग्य का सबसे बड़ा सूत्र है - श्रम । प्रत्येक अवयव को श्रम चाहिए । यदि स्वस्थ रहना है तो हाथ को भी श्रम चाहिए। सभी को, हर अवयव को उचित श्रम चाहिए । जिस अवयव को श्रम नहीं मिलता, वहां रक्त का संचार ठीक नहीं होता। जहां रक्त का संचार ठीक ढंग से नहीं होता, वह अवयव अपने आप रुग्ण बन जाता है। उसके लिए किसी कीटाणु के आक्रमण की, संक्रमण की अपेक्षा नहीं होती । आज के बढ़ते हुए रोगों का सबसे बड़ा कारण है श्रम का अभाव । शिविर में आते हैं, योगासन करते हैं। किसलिए ? यह बहुत बड़ी साधना नहीं है । साधना का दृष्टिकोण भी हो सकता है, पर योगासन कोरी साधना ही नहीं है । उसमें सबसे पहली बात है - कायसिद्धि, काया को साध लेना, काया को स्वस्थ रखना । शरीर स्वस्थ नहीं है तो ध्यान नहीं हो सकता । ध्यान के लिए शरीर स्वस्थ चाहिये | योगासन करते हैं, उसका स्वास्थ्य पर भी असर आता है । प्रश्न होता है स्वावलम्बन और पुरुषार्थ में क्या अन्तर है ? पुरुषार्थ हमारे शरीर की प्रक्रिया है । अंगों को काम में लेना और नियमित करना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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